स नो॑ बोधि सहस्य प्र॒शंस्यो॒ यस्मि॑न्त्सुजा॒ता इ॒षय॑न्त सू॒रयः॑। यम॑ग्ने य॒ज्ञमु॑प॒यन्ति॑ वा॒जिनो॒ नित्ये॑ तो॒के दी॑दि॒वांसं॒ स्वे दमे॑॥
sa no bodhi sahasya praśaṁsyo yasmin sujātā iṣayanta sūrayaḥ | yam agne yajñam upayanti vājino nitye toke dīdivāṁsaṁ sve dame ||
सः। नः॒। बो॒धि॒। स॒ह॒स्य॒। प्र॒ऽशंस्यः॑। यस्मि॑न्। सु॒ऽजा॒ताः। इ॒षय॑न्त। सू॒रयः॑। यम्। अ॒ग्ने॒। य॒ज्ञम्। उ॒प॒ऽयन्ति॑। वा॒जिनः॑। नित्ये॑। तो॒के। दी॒दि॒ऽवांस॑म्। स्वे। दमे॑॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह।
हे सहस्याऽग्ने वाजिनो नित्ये तोके स्वे दमे च दीदिवांसं यं यज्ञमुपयन्ति यस्मिन् सुजाताः सूरय आनन्दमिषयन्त स प्रशंस्यो यज्ञः नोऽस्मान् त्वं बोधि ॥११॥