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स नो॑ बोधि सहस्य प्र॒शंस्यो॒ यस्मि॑न्त्सुजा॒ता इ॒षय॑न्त सू॒रयः॑। यम॑ग्ने य॒ज्ञमु॑प॒यन्ति॑ वा॒जिनो॒ नित्ये॑ तो॒के दी॑दि॒वांसं॒ स्वे दमे॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa no bodhi sahasya praśaṁsyo yasmin sujātā iṣayanta sūrayaḥ | yam agne yajñam upayanti vājino nitye toke dīdivāṁsaṁ sve dame ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। नः॒। बो॒धि॒। स॒ह॒स्य॒। प्र॒ऽशंस्यः॑। यस्मि॑न्। सु॒ऽजा॒ताः। इ॒षय॑न्त। सू॒रयः॑। यम्। अ॒ग्ने॒। य॒ज्ञम्। उ॒प॒ऽयन्ति॑। वा॒जिनः॑। नित्ये॑। तो॒के। दी॒दि॒ऽवांस॑म्। स्वे। दमे॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:2» मन्त्र:11 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:21» मन्त्र:6 | मण्डल:2» अनुवाक:1» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सहस्य) बल के विषय में उत्तम (अग्ने) अग्नि के समान वर्त्तमान विद्वान् ! (वाजिनः) उत्तम विज्ञानवान् पुरुष ! (नित्ये) नित्य (तोके) छोटे व्यवहार में और (स्वे) अपने (दमे) घर में (दीदिवांसम्) प्रकाशित करते हुए (यम्) जिस (यज्ञम्) विद्याप्राप्ति के व्यवहार को (उपयन्ति) प्राप्त होते हैं। (यस्मिन्) जिसमें (सुजाताः) उत्तम पुरुषार्थ से प्रसिद्ध (सूरयः) विद्वान् जन आनन्द को (इषयन्त) प्राप्त होवें। (सः) वह (प्रशंस्यः) प्रशंसा करने योग्य यज्ञ (नः) हम लोगों को आप (बोधि) बतलाइये ॥११॥
भावार्थभाषाः - जो विद्वानों के मार्ग से और सुशीलता से नित्य पदार्थों के विज्ञान को प्राप्त हों, वे औरों को भी प्राप्त करावें ॥११॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे सहस्याऽग्ने वाजिनो नित्ये तोके स्वे दमे च दीदिवांसं यं यज्ञमुपयन्ति यस्मिन् सुजाताः सूरय आनन्दमिषयन्त स प्रशंस्यो यज्ञः नोऽस्मान् त्वं बोधि ॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (नः) अस्मान् (बोधि) (सहस्य) सहसि बले साधो (प्रशंस्यः) प्रशंसितुमर्हः (यस्मिन्) विद्वद्व्यवहारे (सुजाताः) सुष्ठु पुरुषार्थेन प्रसिद्धाः (इषयन्त) प्राप्नुयुः (सूरयः) विद्वांसः (यम्) (अग्ने) अग्निरिव वर्त्तमान (यज्ञम्) विद्याप्राप्तिव्यवहारम् (उपयन्ति) प्राप्नुवन्ति (वाजिनः) प्रकृष्टविज्ञानवन्तः (नित्ये) (तोके) अल्पे (दीदिवांसम्) प्रकाशयन्तम् (स्वे) स्वकीये (दमे) गृहे ॥११॥
भावार्थभाषाः - ये विद्वन्मार्गेण सुशीलतया च नित्यानां पदार्थानां विज्ञानं प्राप्नुयुस्तेऽन्यान्नपि प्रापयेयुः ॥११॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्वानांच्या मार्गाने व सुशीलतेने नित्य पदार्थांची प्राप्ती करतात त्यांनी ते इतरांनाही द्यावे. ॥ ११ ॥