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आ विं॑श॒त्या त्रिं॒शता॑ याह्य॒र्वाङा च॑त्वारिं॒शता॒ हरि॑भिर्युजा॒नः। आ प॑ञ्चा॒शता॑ सु॒रथे॑भिरि॒न्द्रा ष॒ष्ट्या स॑प्त॒त्या सो॑म॒पेय॑म्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā viṁśatyā triṁśatā yāhy arvāṅ ā catvāriṁśatā haribhir yujānaḥ | ā pañcāśatā surathebhir indrā ṣaṣṭyā saptatyā somapeyam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। विं॒श॒त्या। त्रिं॒शता॑। या॒हि॒। अ॒र्वाङ्। आ। च॒त्वा॒रिं॒शता॑। हरि॑ऽभिः। यु॒जा॒नः। आ। प॒ञ्चा॒शता॑। सु॒ऽरथे॑भिः। इ॒न्द्र॒। आ। ष॒ष्ट्या। स॒प्त॒त्या। सो॒म॒ऽपेय॑म्॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:18» मन्त्र:5 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:21» मन्त्र:5 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) असंख्य ऐश्वर्य देनेवाले (युजानः) युक्त होते हुए आप (विंशत्या) बीस (त्रिंशता) और तीस (हरिभिः) हरनेवाले पदार्थों से चलाये हुए यान से (अर्वाङ्) जो नीचे को जाता उस (सोमपेयम्) सोमादि ओषधियों में पीने योग्य रसको (आ,याहि) प्राप्त होओ आओ (चत्वारिंशता) चालीस पदार्थों से युक्त रथसे (आ) आओ (पञ्चाशता) पचास हरणशील पदार्थों से युक्त (सुरथेभिः) सुन्दर रथों से (आ) आओ (षष्ट्या) साठ वा (सप्तत्या) सत्तर हरणशील पदार्थों से युक्त सुन्दर रथों से आओ ॥५॥
भावार्थभाषाः - जैसे बीस-तीस-चालीस-पचास-साठ-सत्तर बलवान् घोड़े एक साथ जोड़कर यान को शीघ्र चलाते हैं, उससे अधिक वेग से अग्नि आदि पदार्थ यान को ले जाते हैं ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे इन्द्र युजानस्त्वं विंशत्या त्रिंशत्या च हरिभिश्चालितेन यानेनार्वाङ् सोमपेयमायाहि चत्वारिंशता युक्तेन चायाहि। पञ्चाशता हरिभिर्युक्तैः सुरथेभिः षष्ठ्या सप्तत्या च हरिभिर्युक्तैः सुरथेभिरायाहि ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) समन्तात् (विंशत्या) एतत्संख्यया संख्यातैः (त्रिंशता) (याहि) (अर्वाङ्) योऽधोऽञ्चति सः (आ) (चत्वारिंशता) (हरिभिः) हरणशीलैः पदार्थैः (युजानः) युक्तः सन् (आ) (पञ्चाशता) (सुरथेभिः) शोभनैर्यानैः (इन्द्र) असंख्यैश्वर्यप्रद (आ) (षष्ट्या) (सप्तत्या) (सोमपेयम्) सोमेष्वोषधीषु यः पेयो रसस्तम् ॥५॥
भावार्थभाषाः - यथा विंशतिस्त्रिंशच्चत्वारिंशत्पञ्चाशत्षष्टिः सप्ततिश्च बलिष्ठा अश्वा युगपद्युक्त्वा यानं सद्यो गमयन्ति ततोऽप्यधिकवेगेन वह्न्यादयो गमयन्ति ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे वीस, तीस, चाळीस, पन्नास, साठ, सत्तर बलवान घोडे एकदम जोडून यान शीघ्र चालवितात त्यापेक्षा अधिक वेगाने अग्नी इत्यादी पदार्थ यानाला घेऊन जातात. ॥ ५ ॥