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प्रा॒ता रथो॒ नवो॑ योजि॒ सस्नि॒श्चतु॑र्युगस्त्रिक॒शः स॒प्तर॑श्मिः। दशा॑रित्रो मनु॒ष्यः॑ स्व॒र्षाः स इ॒ष्टिभि॑र्म॒तिभी॒ रंह्यो॑ भूत्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

prātā ratho navo yoji sasniś caturyugas trikaśaḥ saptaraśmiḥ | daśāritro manuṣyaḥ svarṣāḥ sa iṣṭibhir matibhī raṁhyo bhūt ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्रा॒तरिति॑। रथः॑। नवः॑। यो॒जि॒। सस्निः॑। चतुः॑ऽयुगः। त्रिऽक॒शः। स॒प्तऽर॑श्मिः। दश॑ऽअरित्रः। म॒नु॒ष्यः॑। स्वः॒ऽसाः। सः। इ॒ष्टिऽभिः॑। म॒तिऽभिः॑। रंह्यः॑। भू॒त्॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:18» मन्त्र:1 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:21» मन्त्र:1 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब नव चावाले अठारहवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में यान विषय को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् शिल्पियों से जो (दशारित्रः) दश अरित्रोंवाला अर्थात् जिसमें दश रुकावट के साधन हैं (सस्निः) और जिसमें सोते हैं (चतुर्युगः) जो चार स्थानों में जोड़ा जाता (त्रिकशः) तीन प्रकार के गमन वा गमन साधन जिसमें विद्यमान (सप्तरश्मिः) जिसकी सात प्रकार की किरणें (नव) ऐसा नवीन (रथः) रथ और (स्वर्षा) जिससे सुख उत्पन्न हो ऐसा और (मनुष्यः) विचारशील मनुष्य (प्रातः) प्रभात समय में (योजि) युक्त किया जाता (सः) वह (इष्टिभिः) संगत हुईं और प्राप्त हुईं (मतिभिः) प्रज्ञाओं से (रंह्यः) चलाने योग्य (भूत्) होता है ॥१॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य ऐसे यान से जाने-आने को चाहें, वे निर्विघ्न गतिवाले हों ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ यानविषयमाह।

अन्वय:

हे विद्वन् शिल्पिभिर्यो दशारित्रः सस्निश्चतुर्युगस्त्रिकशः सप्तरश्मिर्नवो रथस्स्वर्षा मनुष्यश्च प्रातर्योजि स इष्टिभिर्मतिभी रंह्यो भूत् ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्रातः) प्रभाते (रथः) गमनसाधनं यानम् (नवः) नवीनः (योजि) अयोजि (सस्निः) शेते यस्मिन् सः (चतुर्युगः) यश्चतुर्षु युज्यते सः (त्रिकशः) त्रिधा कशा गमनानि गमनसाधनानि वा यस्मिन् (सप्तरश्मिः) सप्तविधा रश्मयः किरणा यस्य सः (दशारित्रः) दश अरित्राणि स्तम्भनसाधनानि यस्मिन् सः (मनुष्यः) मननशीलः (स्वर्षाः) स्वः सुखं सुनोति येन सः (इष्टिभिः) सङ्गताभिः (मतिभिः) प्रज्ञाभिः (रंह्यः) गमयितुं योग्यः (भूत्) भवति ॥१॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या ईदृग्यानेन यातुमायातुमिच्छेयुस्तेऽव्याहतगतयः स्युः ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

येथे यान, पदार्थ, ईश्वर, विद्वान व उपदेशकाच्या बोधाचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.

भावार्थभाषाः - माणसे अशा वाहनांनी जाऊ इच्छितात ज्या गतिमान वाहनांद्वारे निर्विघ्नपणे जाता-येता यावे. ॥ १ ॥