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नू॒नं सा ते॒ प्रति॒ वरं॑ जरि॒त्रे दु॑ही॒यदि॑न्द्र॒ दक्षि॑णा म॒घोनी॑। शिक्षा॑ स्तो॒तृभ्यो॒ माति॑ ध॒ग्भगो॑ नो बृ॒हद्व॑देम वि॒दथे॑ सु॒वीराः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

nūnaṁ sā te prati varaṁ jaritre duhīyad indra dakṣiṇā maghonī | śikṣā stotṛbhyo māti dhag bhago no bṛhad vadema vidathe suvīrāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नू॒नम्। सा। ते॒। प्रति॑। वर॑म्। जरि॒त्रे। दु॒ही॒यत्। इ॒न्द्र॒। दक्षि॑णा। म॒घोनी॑। शिक्ष॑। स्तो॒तृऽभ्यः॑। मा। अति॑। ध॒क्। भगः॑। नः॒। बृ॒हत्। व॒दे॒म॒। वि॒दथे॑। सु॒ऽवीराः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:17» मन्त्र:9 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:20» मन्त्र:4 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विदुषी के गुणों को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) देनेवाले राजन् ! (ते) आपके राज्य में जो (दक्षिणा) प्राण देनेवाली (मघोनी) बहुत धन से युक्त विदुषी (जरित्रे) स्तुति करनेवाले के लिए (प्रतिवरम्) श्रेष्ठ काम को (दुहीयत्) पूर्ण करे (सा) वह (नूनम्) निश्चय से कल्याण करनेवाली हो, हे विदुषी ! तू कन्याओं को (शिक्ष) शिक्षा दे (नः) हम लोगों के लिये (स्तोतृभ्यः) स्तुति करनेवाले विद्वानों से (मा, अति, धक्) मत किसी काम का विनाश कर जिससे (सुवीराः) सुन्दर विद्या में व्याप्त होनेवाले वीरों से युक्त हम लोग (विदथे) विद्यादानरूपी यज्ञमें (बृहत्) बहुत (भगः) ऐश्वर्य को (वदेम) कहें ॥९॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वानो ! जो धर्मात्मा विदुषी वा पण्डितानी स्त्रियाँ हों, उनसे सब कन्याओं को सुन्दर शिक्षा दिलाओ जिससे कार्य विनाश न हो ॥९॥ इस सूक्त में विद्वान्, ईश्वर, और विदुषियों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ संगति समझनी चाहिये ॥ यह सत्रहवाँ सूक्त और बीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विदुषीगुणानाह।

अन्वय:

हे इन्द्र राजन् ते तव राज्ये या दक्षिणा मघोनी विदुषी जरित्रे प्रतिवरं दुहीयत् सा नूनं कल्याणकारिणी स्यात्। हे विदुषि त्वं कन्याः शिक्ष नः स्तोतृभ्यो माति धक् येन सुवीरा वयं विदथे बृहद्भगो वदेम ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (नूनम्) निश्चये (सा) विदुषी (ते) तव (प्रति) (वरम्) श्रेष्ठं कर्म (जरित्रे) स्तोत्रे (दुहीयत्) प्रपूरयेत् (इन्द्र) दातः (दक्षिणा) प्राणप्रदा (मघोनी) बहुधनयुक्ता (शिक्ष) उपदिश (स्तोतृभ्यः) विद्वद्भ्यः (मा) निषेधे (अति) (धक्) दहेः (भगः) ऐश्वर्यम् (नः) अस्मभ्यम् (बृहत्) महद्विद्याजं विज्ञानशास्त्रम् (वदेम) उपदिशेम (विदथे) विद्यादाने यज्ञे (सुवीराः) सुष्ठु विद्यासु व्यापिनो वीरा येषान्ते ॥९॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वांसो या धर्मात्मानो विदुष्यः स्त्रियः स्युस्ताभिः सर्वाः कन्याः शिक्षयन्तु यतः कार्यनाशो न स्यात् सर्वथा विद्यायुक्ता भूत्वाऽत्युत्तमानि कर्माणि कुर्य्युः ॥९॥ अत्र सूर्यविद्वदीश्वरविदुषीगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेदितव्या ॥ इति सप्तदशं सूक्तं विंशो वर्गश्च समाप्तः॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वानांनो! ज्या धार्मिक, विदुषी किंवा पंडिता स्त्रिया असतील त्यांच्याकडून सर्व मुलींना शिक्षण द्या. ज्यामुळे कार्याचा विनाश होता कामा नये. संपूर्ण विद्या शिकून त्यांनी उत्तम कार्य करावे. ॥ ९ ॥