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प्र ते॒ नावं॒ न सम॑ने वच॒स्युवं॒ ब्रह्म॑णा यामि॒ सव॑नेषु॒ दाधृ॑षिः। कु॒विन्नो॑ अ॒स्य वच॑सो नि॒बोधि॑ष॒दिन्द्र॒मुत्सं॒ न वसु॑नः सिचामहे॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra te nāvaṁ na samane vacasyuvam brahmaṇā yāmi savaneṣu dādhṛṣiḥ | kuvin no asya vacaso nibodhiṣad indram utsaṁ na vasunaḥ sicāmahe ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र। ते॒। नाव॑म्। न। सम॑ने। व॒च॒स्युव॑म्। ब्रह्म॑णा। या॒मि॒। सव॑नेषु। दधृ॑षिः। कु॒वित्। नः॒। अ॒स्य। वच॑सः। नि॒ऽबोधि॑षत्। इन्द्र॑म्। उत्स॑म्। न। वसु॑नः। सि॒चा॒म॒हे॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:16» मन्त्र:7 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:18» मन्त्र:2 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् (सवनेषु) ऐश्वर्यों वा प्रेरणाओं में (दाधृषिः) अतीव प्रगल्भ में (ते) तुम्हारे (समने) संग्राम के निमित्त (नावम्) जल में नाव को जैसे (न) वैसे (प्रयामि) प्राप्त होता (ब्रह्मणा) वेद के साथ (वचस्युवम्) अपने को वचन की इच्छा करते अर्थात् वेदशिक्षाओं को चाहते हुए जनको प्राप्त होता (कुवित्) महान् आप (अस्य) इस (वचसः) वचन के सम्बन्ध करनेवाले (नः) हम लोगों को (निबोधिषत्) निश्चित जानो हम लोग (उत्सम्) कूप के (न) समान वा (इन्द्रम्) बिजली के समान ऐश्वर्य के (वसुनः) द्रव्यसम्बन्धी व्यवहारों से (सिचामहे) सींचते हैं ॥७॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो नौकाओं से समुद्र में रथों से पृथिवी पर और विमानों से आकाश में युद्ध करते हैं, वे सदा ऐश्वर्य को प्राप्त होते हैं ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे विद्वन् सवनेषु दाधृषिरहन्ते तव समने नावन्न प्रयामि ब्रह्मणा वचस्युवं प्रयामि कुविद्भवानस्य वचसो नोऽस्मान्निबोधिषद्वयमुत्सं नेन्द्रं वसुनः सिचामहे ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) (ते) तव (नावम्) (न) इव (समने) सङ्ग्रामे (वचस्युवम्) आत्मनो वच इच्छन्तम् (ब्रह्मणा) वेदेन (यामि) गच्छामि (सवनेषु) ऐश्वर्येषु प्रेरणेषु (दाधृषिः) अतिशयेन प्रगल्भः (कुवित्) महान् (नः) अस्मान् (अस्य) (वचसः) (निबोधिषत्) निश्चितं बुध्यात् (इन्द्रम्) विद्युतमिवैश्वर्यम् (उत्सम्) कूपम् (न) इव (वसुनः) द्रव्यस्य (सिचामहे) सिञ्चेम ॥७॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः ये नौभिः समुद्रे रथैः पृथिव्यां विमानैराकाशे युध्येरँस्ते सदैश्वर्यमश्नुवते ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे नौकांद्वारे समुद्रात, रथाद्वारे पृथ्वीवर व विमानांनी आकाशात युद्ध करतात ते सदैव ऐश्वर्य प्राप्त करतात. ॥ ७ ॥