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अध्व॑र्यवो॒ य उर॑णं ज॒घान॒ नव॑ च॒ख्वांसं॑ नव॒तिं च॑ बा॒हून्। यो अर्बु॑द॒मव॑ नी॒चा ब॑बा॒धे तमिन्द्रं॒ सोम॑स्य भृ॒थे हि॑नोत॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

adhvaryavo ya uraṇaṁ jaghāna nava cakhvāṁsaṁ navatiṁ ca bāhūn | yo arbudam ava nīcā babādhe tam indraṁ somasya bhṛthe hinota ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अध्व॑र्यवः। यः। उर॑णम्। ज॒घान॑। नव॑। च॒ख्वांस॑म्। न॒व॒तिम्। च॒। बा॒हून्। यः। अर्बु॑दम्। अव॑। नी॒चा। ब॒बा॒धे। तम्। इन्द्र॑म्। सोम॑स्य। भृ॒थे। हि॒नो॒त॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:14» मन्त्र:4 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:13» मन्त्र:4 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले उपदेश में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अध्वर्यवः) सबके प्रियाचरणों को करनेवाले विद्वानो तुम (यः) जो जन (उरणम्) आच्छादन करनेवाले (चख्वांसम्) मारनेवाले के प्रति मारनेवाले को (जघान) मारे और (नव, नवतिम्) न्यन्यानवे (बाहून्) बाहुओं के समान सहाय करनेवालों को (च) भी मारे (यः) जो (अर्बुदम्) दशक्रोड़ (नीचा) नीचों को (अव, बबाधे) विलोता है (तम्) उस (इन्द्रम्) बिजुली के समान सेनापति को (सोमस्य) ऐश्वर्य के (भृथे) धारण करने में (हिनोत) प्रेरणा देओ ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे सेनास्थ मनुष्यो तुमको जो कि अनेकों सहाय युक्त दुष्ट करनेवाले दुराचारियों का मारने और राज्यैश्वर्य का पुष्ट करनेवाला हो, वह सेनापति करना चाहिये ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे अध्वर्ययो विद्वांसो यूयं य उरणं चख्वांसं जघान नवनवतिं बाहूँश्च जघान योऽर्बुदं नीचावबबाधे तमिन्द्रं सोमस्य भृथे हिनोत ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अध्वर्यवः) सर्वस्य प्रियाचरणाः (यः) जनः (उरणम्) आच्छादकम् (जघान) हन्यात् (नव) (चख्वांसम्) प्रतिघातम् (नवतिम्) (च) (बाहून्) बाहुवत्सहायिनः (यः) (अर्बुदम्) एतत्सङ्ख्याकम् (अव) (नीचा) नीचकर्मकर्तॄन् (बबाधे) बाधते (तम्) (इन्द्रम्) विद्युतमिव सेनेशम् (सोमस्य) ऐश्वर्यस्य (भृथे) धारणे (हिनोत) प्रेरयत ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे सेनास्थजना युष्माभिरनेकेषां दुष्टानां ससहायानां नीचकर्मकारिणां जनानां हन्ता राज्यैश्वर्यस्य भर्त्ता सेनेशः कर्त्तव्यः ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे सैन्यातील लोकांनो! जो अनेक दुष्टांना, दुराचाऱ्यांना मारणारा व राजैश्वर्य वाढविणारा असतो त्याला सेनापती करा. ॥ ४ ॥