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अध्व॑र्यवो॒ भर॒तेन्द्रा॑य॒ सोम॒माम॑त्रेभिः सिञ्चता॒ मद्य॒मन्धः॑। का॒मी हि वी॒रः सद॑मस्य पी॒तिं जु॒होत॒ वृष्णे॒ तदिदे॒ष व॑ष्टि॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

adhvaryavo bharatendrāya somam āmatrebhiḥ siñcatā madyam andhaḥ | kāmī hi vīraḥ sadam asya pītiṁ juhota vṛṣṇe tad id eṣa vaṣṭi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अध्व॑र्यवः। भर॑त। इन्द्रा॑य। सोम॑म्। आ। अम॑त्रेभिः। सि॒ञ्च॒त॒। मद्य॑म्। अन्धः॑। का॒मी। हि। वी॒रः। सद॑म्। अ॒स्य॒। पी॒तिम्। जु॒होत॑। वृष्णे॑। तत्। इत्। ए॒षः। व॒ष्टि॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:14» मन्त्र:1 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:13» मन्त्र:1 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब बारह चावाले चौदहवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में सोम के गुणों को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अध्वर्यवः) अपने को यज्ञ कर्मों की चाहना करनेवाले मनुष्यो ! तुम जो (एषः) यह (कामी) कामना करने के स्वभाववाला (वीरः) वीर (वृष्णे) बल बढ़ाने के लिये (अस्य) इस सोमरस के (पितीम्) पान को (वष्टि) चाहता है (तत्, इत्) उसे (सदम्) पाने योग्य सोम (हि) को निश्चय से तुम (जुहोत) ग्रहण करो (इन्द्राय) और परमैश्वर्य के लिये (अमत्रेभिः) उत्तम पात्रों से (मद्यम्) हर्ष के देनेवाले (अन्धः) अन्न को तथा (सोमम्) सोम रस को (सिञ्चत) सींचो और बल को (आ, भरत) पुष्ट करो ॥१॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य सर्व रोग हरने, बुद्धि और बल के देनेवाले भोजन और पान अर्थात् उत्तम वस्तु पीने की कामना करते हैं, वे बलिष्ठ वीर होते हैं ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ सोमगुणानाह।

अन्वय:

हे अध्वर्यवो यूयं य एषः कामी वीरो वृष्णेऽस्य पीतिं वष्टि तदित्सदं हि यूयं जुहोतेन्द्रायामत्रेर्मद्यमन्धः सोमं सिञ्चत बलमाभरत ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अध्वर्यवः) आत्मनोऽध्वरं कामयमानाः (भरत) (इन्द्राय) परमैश्वर्याय (सोमम्) ओषध्यादिरसम् (आ) समन्तात् (अमत्रेभिः) पात्रैः (सिञ्चत) अत्राऽन्येषामपीति दीर्घः। (मद्यम्) हर्षप्रदम् (अन्धः) अन्नम् (कामी) कामयितुं शीलः (हि) खलु (वीरः) (सदम्) प्राप्तव्यम् (अस्य) सोमस्य (पीतिम्) पानम् (जुहोत) गृह्णीत (वृष्णे) बलवर्द्धनाय (तत्) तम् (इत्) (एषः) (वष्टि) कामयते ॥१॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या सर्वरोगहरं बुद्धिबलप्रदं भोजनं पानं च कामयन्ते ते बलिष्ठा वीरा जायन्ते ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात सोम, विद्युत, राजा व प्रजा आणि क्रिया कुशलतेचे प्रयोजन यांच्या वर्णनाने या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.

भावार्थभाषाः - जी माणसे सर्व रोग नष्ट करणारे, बुद्धी व बल देणारे खान-पान करण्याची इच्छा बाळगतात ती बलिष्ठ होतात. ॥ १ ॥