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यः पु॒ष्पिणी॑श्च प्र॒स्व॑श्च॒ धर्म॒णाधि॒ दाने॒ व्य१॒॑वनी॒रधा॑रयः। यश्चास॑मा॒ अज॑नो दि॒द्युतो॑ दि॒व उ॒रुरू॒र्वाँ अ॒भितः॒ सास्यु॒क्थ्यः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yaḥ puṣpiṇīś ca prasvaś ca dharmaṇādhi dāne vy avanīr adhārayaḥ | yaś cāsamā ajano didyuto diva urur ūrvām̐ abhitaḥ sāsy ukthyaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः। पु॒ष्पिणीः॑। च॒। प्र॒ऽस्वः॑। च॒। धर्म॑णा। अधि॑। दाने॑। वि। अ॒वनीः॑। अधा॑रयः। यः। च॒। अस॑माः। अज॑नः। दि॒द्युतः॑। दि॒वः। उ॒रुः। ऊ॒र्वान्। अ॒भितः॑। सः। अ॒सि॒। उ॒क्थ्यः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:13» मन्त्र:7 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:11» मन्त्र:2 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे जगदीश्वर ! (यः) जो आप (धर्मणा) धर्म से (दाने) देने में (पुष्पिणीः) फूलोंवाली (च) वा (प्रस्वः) फल उत्पन्न करनेवाली लतादिकों (च) वा (अवनीः) भूमियों को (अधि, अधारयः) अधिकता से धारण करते (यः) जो (असमाः) असमान (दिद्युतः) बिजुलियों को वा (दिवः) प्रकाशमय लोकों को (अभितः) सब ओर से (वि, अजनः) विशेषता से उत्पन्न करते हैं (च) और जो (उरुः) बहुशक्तिमान् आप (ऊर्वान्) अविनाशी पदार्थों को प्रकट करते हैं (सः) वह आप हम लोगों से (उक्थ्यः) प्रशंसनीयों में प्रसिद्ध (असि) हैं ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जिस ईश्वर ने बहुत पुष्प और फलयुक्त ओषधी सबकी आधारभूत पृथिवी और बिजुली आदि पदार्थ उत्पन्न किये हैं, वही आप हम लोगों को उपास्य हैं ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे जगदीश्वर यस्त्वं धर्मणा दाने पुष्पिणीश्च प्रस्वश्चावनीरध्यधारयः। योऽसमा दिद्युतो दिवोऽभितो व्यजनः। यश्चोरुरूर्वान् प्रकटयति सोऽस्माभिस्त्वमुक्थ्योऽसि ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) (पुष्पिणीः) बहूनि पुष्पाणि यासु ताः (च) (प्रस्वः) प्रसावित्रीः (च) (धर्मणा) धर्मेण (अधि) उपरिभावे (दाने) दीयते येन तस्मिन् (वि) विशेषेण (अवनीः) पृथिवीः (अधारयः) धरति (यः) (च) (असमाः) असदृशीः (अजनः) जनयति (दिद्युतः) तडितः (दिवः) प्रकाशमयाँल्लोकान् (उरुः) बहुशक्तिः (ऊर्वान्) विनश्वरान् पदार्थान् (अभितः) (सः) (असि) (उक्थ्यः) ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या येनेश्वरेण बहुपुष्पफलयुक्ता ओषधीः सर्वाधारा पृथिवी विद्दुदादयः पदार्था निर्मिताः स एवाऽस्माभिरुपास्योऽस्ति ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - भावार्थ -हे माणसांनो! ज्या ईश्वराने पुष्कळ पुष्प व फलयुक्त औषधी, सर्वांचा आधार असलेली पृथ्वी व विद्युत इत्यादी पदार्थ उत्पन्न केलेले आहेत, तोच आम्हा सर्वांचा उपास्य आहे. ॥ ७ ॥