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अधा॑कृणोः पृथि॒वीं सं॒दृशे॑ दि॒वे यो धौ॑ती॒नाम॑हिह॒न्नारि॑णक्प॒थः। तं त्वा॒ स्तोमे॑भिरु॒दभि॒र्न वा॒जिनं॑ दे॒वं दे॒वा अ॑जन॒न्त्सास्यु॒क्थ्यः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

adhākṛṇoḥ pṛthivīṁ saṁdṛśe dive yo dhautīnām ahihann āriṇak pathaḥ | taṁ tvā stomebhir udabhir na vājinaṁ devaṁ devā ajanan sāsy ukthyaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अध॑। अ॒कृ॒णोः॒। पृ॒थि॒वीम्। स॒म्ऽदृशे॑। दि॒वे। यः। धौ॒ती॒नाम्। अ॒हि॒ऽह॒न्। अरि॑णक्। प॒थः। तम्। त्वा॒। स्तोमे॑भिः। उ॒दऽभिः॑। न। वा॒जिन॑म्। दे॒वम्। दे॒वाः। अ॒ज॒न॒न्। सः। अ॒सि॒। उ॒क्थ्यः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:13» मन्त्र:5 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:10» मन्त्र:5 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अहिहन्) मेघहन्ता सूर्य के समान शत्रुओं को हननेवाले ! (यः) जो आप (धौतीनाम्) धावन करती हुई नदियों के (पथः) मार्गों को (अरिणक्) अलग-अलग करते हैं (अध) इसके अनन्तर (दिवे) प्रकाश के लिये (पृथिवीम्) भूमि को (संदृशे) अच्छे प्रकार देखने को (अकृणोः) करते हैं अर्थात् मार्गों को शुद्ध कराते जिन (त्वा) आपको (वाजिनम्) वेगवान् और (देवम्) दिव्य गुण, कर्म, स्वभाववाले को (देवाः) देदीप्यमान विद्वान् जन (अजनन्) उत्पन्न करते हैं (तम्) उन आपको (उदभिः) जलों से (न) जैसे वैसे (स्तोमेभिः) स्तुतियों से हम लोग प्रशंसित करते हैं (सः) वह आप (उक्थ्यः) कथनीय जनों में प्रसिद्ध (असि) हैं ॥५॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं । हे मनुष्यो ! जैसे सविता नदियों के मार्गों को उत्पन्न करता सब मूर्तिमान् द्रव्य को प्रकाशित करता, वैसे न्याय मार्गों को अच्छे प्रकार चला कर विद्या और शिक्षा का प्रकाश तुम करो ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे अहिहन् यो भवान् धौतीनां पथोऽरिणगध दिवे पृथिवीं संदृशेऽकृणोः। यं त्वा वाजिनं देवं देवा अजनँस्तं त्वामुदभिर्न स्तोमेभिः प्रशंसेम स त्वमुक्थ्योऽसि ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अध) (अकृणोः) करोति (पृथिवीम्) भूमिम् (संदृशे) सम्यग्द्रष्टुं (दिवे) प्रकाशाय (यः) (धौतीनाम्) धावन्तीनां नदीनाम् (अहिहन्) अहेर्मेघस्य हन्तेव शत्रुहन् (अरिणक्) विरिणक्ति (पथः) मार्गान् (तम्) (त्वा) त्वाम् (स्तोमेभिः) स्तुतिभिः (उदभिः) उदकैः (न) इव (वाजिनम्) वेगवन्तम् (देवम्) दिव्यगुणकर्मस्वभावम् (देवाः) देदीप्यमानाः (अजनन्) जनयन्ति (सः) (असि) (उक्थ्यः) ॥५॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। हे मनुष्या यथा सविता नदीनां मार्गान् जनयति सर्वं मूर्त्तन्द्रव्यं प्रकाशयति तथा न्यायमार्गान् संचाल्य विद्याशिक्षे यूयं प्रकाशयत ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. हे माणसांनो! जसा सूर्य नद्यांचे मार्ग उत्पन्न करतो, सर्व मूर्तिमान द्रव्यांना प्रकाशित करतो तसे तुम्ही न्यायमार्गाने विद्या व शिक्षण प्रकट करा. ॥ ५ ॥