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सु॒प्र॒वा॒च॒नं तव॑ वीर वी॒र्यं१॒॑ यदेके॑न॒ क्रतु॑ना वि॒न्दसे॒ वसु॑। जा॒तूष्ठि॑रस्य॒ प्र वयः॒ सह॑स्वतो॒ या च॒कर्थ॒ सेन्द्र॒ विश्वा॑स्यु॒क्थ्यः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

supravācanaṁ tava vīra vīryaṁ yad ekena kratunā vindase vasu | jātūṣṭhirasya pra vayaḥ sahasvato yā cakartha sendra viśvāsy ukthyaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सु॒ऽप्र॒वा॒च॒नम्। तव॑। वी॒र॒। वी॒र्य॑म्। यत्। एके॑न। क्रतु॑ना। वि॒न्दसे॑। वसु॑। जा॒तूऽस्थि॑रस्य। प्र। वयः॑। सह॑स्वतः। या। च॒कर्थ॑। सः। इ॒न्द्र॒। विश्वा॑। अ॒सि॒। उ॒क्थ्यः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:13» मन्त्र:11 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:12» मन्त्र:1 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) परमैश्वर्य की प्राप्ति करनेवाले ! जिस कारण आप (उक्थ्यः) प्रशंसा करने योग्य (असि) हो, हे (वीर) प्रशंसित बलयुक्त ! जिन (जातूष्ठिरस्य) कभी स्थिर पाये हुए (सहस्वतः) बलवान् (तव) आपका (सुप्रवाचनम्) सुन्दर अति उत्कृष्ट पढ़ाना, श्रवण कराना और (वीर्यम्) उत्तम पराक्रम है, (तत्) जो आप (एकेन) एक (क्रतुना) कर्म वा ज्ञान से (वयः) विज्ञान और (वसु) धन को (प्रविन्दसे) प्राप्त होते हैं, (या) जिन (विश्वा) समस्त उक्त कामों को (चकर्थ) करते हैं (सः) वह आप उन कामों के लिये हम लोगों के राजा वा उपदेशक वा अध्यापक हूजिये ॥११॥
भावार्थभाषाः - जिनके वेद के पारङ्गत अध्यापक विद्वान् प्रेम से उत्तम ज्ञान को देते हैं, वे कभी दुःखी वा निन्दित नहीं होते हैं ॥११॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे इन्द्र यतस्त्वमुक्थ्योऽसि हे वीर यस्य जातूष्ठिरस्य सहस्वतस्तव सुप्रवाचनं वीर्यं यद्यस्त्वमेकेन क्रतुना वयो वसु च प्रविन्दसे या विश्वोत्तमानि कर्माणि चकर्थ स त्वमेतेभ्यो नो राजोपदेशकोऽध्यापको वा भव ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सुप्रवाचनम्) सुष्ठुप्रकृष्टमध्यापनं श्रावणम् वा (तव) (वीर) प्रशस्तबलयुक्त (वीर्य्यम्) पराक्रमम् (यत्) (एकेन) (क्रतुना) कर्मणा प्रज्ञानेन वा (विन्दसे) लभसे (वसु) द्रव्यम् (जातूष्ठिरस्य) कदाचिल्लब्धस्थितेः (प्र) (वयः) विज्ञानम् (सहस्वतः) बलवतः (या) यानि (चकर्थ) करोषि (सः) (इन्द्र) परमैश्वर्यप्रापक (विश्वा) सर्वाणि (असि) (उक्थ्यः) प्रशंसितुं योग्यः ॥११॥
भावार्थभाषाः - येषां वेदपारगा अध्यापकाः प्रेम्णा प्रज्ञां प्रयच्छन्ति ते कदाचिदपि दुःखिता निन्दिताश्च न भवन्ति ॥११॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - वेदपारंगत विद्वान अध्यापक ज्यांना प्रेमाने उत्तम ज्ञान देतात ते कधी दुःखी किंवा निन्दित होत नाहीत. ॥ ११ ॥