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यं क्रन्द॑सी संय॒ती वि॒ह्वये॑ते॒ परेऽव॑र उ॒भया॑ अ॒मित्राः॑। स॒मा॒नं चि॒द्रथ॑मातस्थि॒वांसा॒ नाना॑ हवेते॒ स ज॑नास॒ इन्द्रः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yaṁ krandasī saṁyatī vihvayete pare vara ubhayā amitrāḥ | samānaṁ cid ratham ātasthivāṁsā nānā havete sa janāsa indraḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यम्। क्रन्द॑सी॒ इति॑। सं॒य॒ती इति॑ स॒म्ऽय॒ती। वि॒ह्वये॑ते॒ इति॑ वि॒ऽह्वये॑ते। परे॑। अव॑रे। उ॒भयाः॑। अ॒मित्राः॑। स॒मा॒नम्। चि॒त्। रथ॑म्। आ॒त॒स्थि॒ऽवांसा॑। नाना॑। ह॒वे॒ते॒ इति॑। सः। ज॒ना॒सः॒। इन्द्रः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:12» मन्त्र:8 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:8» मन्त्र:3 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (जनासः) विद्याप्रिय मनुष्यो ! तुमको (क्रन्दसी) रोने का शब्द कराने (संयती) और संयम से जानेवाले प्रकाश और पृथिवी (यम्) जिस सूर्यमण्डल को जैसे कोई पदार्थ (विह्वयेते) स्पर्द्धा करें वैसे वा (परे) उत्तम (अवरे) न्यून (उभयाः) अर्थात् प्रकाश और अप्रकाशयुक्त दोनों कोटियों का सम्बन्ध करने (अमित्राः) शत्रुजन जैसे (समानम्) समान (रथम्) रथ आदि यान को (चित्) वैसे (आतस्थिवांसा) सब ओर से स्थिर (नाना) अनेक प्रकार से (हवेते) ग्रहण करते हैं (सः) वह (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् है, यह जानना चाहिये ॥८॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे दो सेना सम्मुख खड़ी होकर युद्ध करती हैं, वैसे प्रकाश और अप्रकाश वर्त्तमान हैं ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे जनासो विद्याप्रिया युष्माभिः क्रन्दसी संयती द्यावापृथिव्यौ यं विह्वयेते परेऽवर उभया अमित्रा समानं रथं चिदिव आतस्थिवांसा नाना हवेते गृह्णीतः स इन्द्रो बोध्यः ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यम्) सूर्य्यम् (क्रन्दसी) रोदनशब्दनिमित्ते (संयती) संयमेन गच्छन्त्यौ द्यावापृथिव्यौ (विह्वयेते) विस्पर्द्धेते इव (परे) प्रकृष्टाः (अवरे) अर्वाचीनाः (उभयाः) प्रकाशाऽप्रकाशोभयकोटिसम्बन्धिनः (अमित्राः) शत्रवः (समानम्) (चित्) इव (रथम्) रथादियानम् (आतस्थिवांसा) समन्तात्तिष्ठन्तौ (नाना) अनेकविधा (हवेते) आदत्तः (सः) (जनासः) (इन्द्रः) ॥८॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथा द्वे सेने सम्मुखे स्थित्वा युध्येते तथैव प्रकाशाऽप्रकाशौ वर्त्तेते ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जशा दोन सेना समोरासमोर उभ्या राहून युद्ध करतात तसे प्रकाश व काळोख आहेत. ॥ ८ ॥