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यः सु॒न्वन्त॒मव॑ति॒ यः पञ्च॑न्तं॒ यः शंस॑न्तं॒ यः श॑शमा॒नमू॒ती। यस्य॒ ब्रह्म॒ वर्ध॑नं॒ यस्य॒ सोमो॒ यस्ये॒दं राधः॒ स ज॑नास॒ इन्द्रः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yaḥ sunvantam avati yaḥ pacantaṁ yaḥ śaṁsantaṁ yaḥ śaśamānam ūtī | yasya brahma vardhanaṁ yasya somo yasyedaṁ rādhaḥ sa janāsa indraḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः। सु॒न्वन्त॑म्। अव॑ति। यः। पञ्च॑न्तम्। यः। शंस॑न्तम्। यः। श॒श॒मा॒नम्। ऊ॒ती। यस्य॑। ब्रह्म॑। वर्ध॑नम्। यस्य॑। सोमः॑। यस्य॑। इ॒दम्। राधः॑। सः। ज॒ना॒सः॒। इन्द्रः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:12» मन्त्र:14 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:9» मन्त्र:4 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:14


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब ईश्वर के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (जनासः) विद्वान् मनुष्यो ! तुम लोगों को (यः) जो जगदीश्वर (ऊती) रक्षा आदि क्रिया से (सुन्वन्तम्) सबके सुख के लिये उत्तम-उत्तम पदार्थों के रस निकालते हुए को वा (यः) जो (पञ्चन्तम्) पक्का करते हुए को वा (यः) जो (शंसन्तम्) प्रशंसा करते हुए को वा (यः) जो (शशमानम्) अधर्म को उल्लंघन करते हुए को (अवति) रखता है, पालता है (यस्य) जिसका (ब्रह्म) वेद (वर्द्धनम्) वृद्धिरूप (यस्य) जिस जगदीश्वर का (सोमः) चन्द्रमा और औषधियों का समूह (यस्य) जिसका (इदम्) यह (राधः) धन है (सः) वह (इन्द्रः) सर्वैश्वर्यवान् जगदीश्वर निरन्तर उपासना करने योग्य है ॥१४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जिस परमात्मा ने वेदोपदेश द्वारा मनुष्यों की उन्नति की वा जिससे धर्मात्मा जन पलते वा जिससे दुष्टाचरण करनेवाले ताड़ना पाते वा जिसका यह सब जगत् ऐश्वर्यरूप है, उसका ध्यान अपने-अपने आत्माओं में निरन्तर करो ॥१४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेश्वरविषयमाह।

अन्वय:

हे जनासो विद्वांसो युष्माभिर्यो जगदीश्वरः ऊत्या सुन्वन्तम् यः पञ्चन्तं कुर्वन्तं यः शंसन्तं यः शशमानं चावति यस्य ब्रह्म वर्द्धनम् यस्य सोमो यस्येदं राधोऽस्ति स इन्द्रः सततमुपासनीयः ॥१४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) (सुन्वन्तम्) सर्वस्य सुखायाभिषवं निष्पादयन्तम् (अवति) रक्षति (यः) (पञ्चन्तम्) परिपक्वं कुर्वन्तम् (यः) (शंसन्तम्) प्रशंसां कुर्वन्तम् (यः) (शशमानम्) अधर्ममुल्लङ्घमानम् (ऊती) रक्षणाद्यया क्रियया (यस्य) (ब्रह्म) वेदः (वर्द्धनम्) (यस्य) जगदीश्वरस्य (सोमः) चन्द्रौषधिगणः (यस्य) (इदम्) (राधः) धनम् (सः) (जनासः) (इन्द्रः) ॥१४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या येन परमात्मना वेदोपदेशद्वारा मनुष्योन्नतिः कृता येन धार्मिका रक्ष्यन्ते दुष्टाचारास्ताड्यन्ते यस्येदं जगत्सर्वमैश्वर्यमस्ति तमात्मसु सततं ध्यायत ॥१४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! ज्या परमेश्वराने वेदोपदेशाद्वारे माणसाची उन्नती केलेली आहे किंवा ज्यामुळे धर्मात्मा लोकांचे पालन होते, ज्याच्याकडून दुष्टाचरण करणारे मार खातात किंवा ज्याचे हे जग ऐश्वर्यरूप आहे, त्याचे ध्यान आपल्या आत्म्यात निरंतर करा. ॥ १४ ॥