वांछित मन्त्र चुनें

श्रू॒या अ॒ग्निश्चि॒त्रभा॑नु॒र्हवं॑ मे॒ विश्वा॑भिर्गी॒र्भिर॒मृतो॒ विचे॑ताः। श्या॒वा रथं॑ वहतो॒ रोहि॑ता वो॒तारु॒षाह॑ चक्रे॒ विभृ॑त्रः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śrūyā agniś citrabhānur havam me viśvābhir gīrbhir amṛto vicetāḥ | śyāvā rathaṁ vahato rohitā votāruṣāha cakre vibhṛtraḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

श्रू॒याः। अ॒ग्निः। चि॒त्रऽभा॑नुः। हव॑म्। मे॒। विश्वा॑भिः। गीः॒ऽभिः। अ॒मृतः॑। विऽचे॑ताः। श्या॒वा। रथ॑म्। व॒ह॒तः॒। रोहि॑ता। वा॒। उ॒त। अ॒रु॒षा। अह॑। च॒क्रे॒। विऽभृ॑त्रः॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:10» मन्त्र:2 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:2» मन्त्र:2 | मण्डल:2» अनुवाक:1» मन्त्र:2


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्वानों को अग्निविद्या ग्रहण का उपदेश किया जाता है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! आप जो (चित्रभानुः) चित्र-विचित्र दीप्तिवाला (अमृतः) मृत्युधर्मरहित (विचेताः) विविध प्रकार का ज्ञान जिससे होता है (विभृतः) और जो नाना प्रकार पदार्थों से धारण करनेवाला (अग्निः) अग्नि है। जिसके सम्बन्ध के (रथम्) रथ को सवितृमण्डलस्थ (रोहिता) ललामी आदि गुण के लिये (उत) और (अरुषा) मर्मस्थलों में व्याप्त होने और (श्यावा) सब विषयों की प्राप्ति करानेवाले धारण और आकर्षण गुण (वहतः) एक देश से दूसरे देश को पहुँचाते हैं (वा) अथवा (अह) निश्चय से उसको (चक्रे) शिल्पीजन बनाता है, उसकी विद्या के उपदेश को (मे) मेरी (विश्वाभिः) समस्त (गीर्भिः) वाणियों से (श्रूयाः) सुनिये ॥२॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य जिससे बिजुली आदि पदार्थ उत्पन्न होते हैं, सबका जीवन भी होता है, उस अग्नि की विद्या को सब उपायों से ग्रहण करें ॥२॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विदुषामग्निविद्याग्रहणमुपदिश्यते।

अन्वय:

हे विद्वँत्स्वं यश्चित्रभानुरमृतो विचेता बिभृतोऽग्निर्यस्य रथं सवितू रोहिता उताप्यरुषा श्यावा वहतो वाह शिल्पी चक्रे तद्धवं मे विश्वाभिर्गीर्भिश्श्रूयाः ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (श्रूयाः) शृणुयाः (अग्निः) पावकः (चित्रभानुः) विचित्रदीप्तिः (हवम्) विद्योपदेशम् (मे) मम (विश्वाभिः) समग्राभिः (गीर्भिः) सुशिक्षितयुक्ताभिर्वाग्भिः (अमृतः) मृत्युरहितः (विचेताः) विविधचेतो ज्ञानं यस्मात् सः (श्यावा) प्राप्तिसाधकौ धारणाकर्षणाख्यावश्विनौ (रथम्) रमणीयं जगत् (वहतः) प्रापयतः (रोहितः) रक्तादिगुणविशिष्टौ (वा) (उत) (अरुषा) मर्मसु व्यापकौ (अह) (चक्रे) करोति (विभृतः) यो विविधं बिभर्ति सः ॥२॥
भावार्थभाषाः - मनुष्या यस्माद्विद्युदादय उत्पद्यन्ते सर्वस्य जीवनं च भवति तस्याग्नेर्विद्यां सर्वेरुपायैर्गृह्णीयुः ॥२॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्याच्यापासून विद्युत इत्यादी पदार्थ उत्पन्न होतात, सर्वांचे जीवनही असते, त्या अग्निच्या विद्येला माणसांनी सर्व तऱ्हेने ग्रहण करावे. ॥ २ ॥