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त्वाम॑ग्ने पि॒तर॑मि॒ष्टिभि॒र्नर॒स्त्वां भ्रा॒त्राय॒ शम्या॑ तनू॒रुच॑म्। त्वं पु॒त्रो भ॑वसि॒ यस्तेऽवि॑ध॒त्त्वं सखा॑ सु॒शेवः॑ पास्या॒धृषः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvām agne pitaram iṣṭibhir naras tvām bhrātrāya śamyā tanūrucam | tvam putro bhavasi yas te vidhat tvaṁ sakhā suśevaḥ pāsy ādhṛṣaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वाम्। अ॒ग्ने॒। पि॒तर॑म्। इ॒ष्टिऽभिः॑। नरः॑। त्वाम्। भ्रा॒त्राय॑। शम्या॑। त॒नू॒ऽरुच॑म्। त्वम्। पु॒त्रः। भ॒व॒सि॒। यः। ते॒। अवि॑धत्। त्वम्। सखा॑। सु॒ऽशेवः॑। पा॒सि॒। आ॒ऽधृषः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:1» मन्त्र:9 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:18» मन्त्र:4 | मण्डल:2» अनुवाक:1» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजशिष्य विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) अग्नि के वर्त्तमान राजन् ! (यः) जो (त्वम्) आप (पुत्रः) बहुत दुखः से रक्षा करनेवाले (भवसि) होते हैं जो (ते) आपके सुख का (अविधत्) विधान करता है जो (सुशेवः) सुन्दर सुख देनेवाले (सखा) मित्र (त्वम्) आप (आधृषः) सब और से धृष्टता करनेवाले जनों को (पासि) पालते हो उन (त्वाम्) आप (तनूरुचम्) तनूरुच् अर्थात् जिनके लिये शरीर प्रकाशित होते वा उन (त्वाम्) आप (पितरम्) पालनेवाले वा (इष्टिभिः) हवनों के समान सत्कारों से अग्नि के तुल्य वर्त्तमान को (भ्रात्राय) भाईपने के लिये (शम्या) कर्म के साथ (नरः) मनुष्य पालें ॥९॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे होम आदि से अच्छा सेवन किया हुआ अग्नि रक्षा करनेवाला होता है, वैसे भ्राता मित्र पुत्रजन अपने भ्राता मित्र और पितृयों को सेवें ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजशिष्यविषयमाह।

अन्वय:

हे अग्ने यस्त्वं पुत्रो भवसि यस्ते सुखमविधत्। यः सुशेवः सखा त्वमाधृषः पासि तं त्वां तनूरुचं तं त्वां पितरमिष्टिभिरग्निरिव वर्त्तमानं भ्रात्राय शम्या नरः पान्तु ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वाम्) (अग्ने) अग्निरिव वर्त्तमान राजन् (पितरम्) पालकम् (इष्टिभिः) होमैरिव सत्कारैः (नरः) मनुष्याः (त्वाम्) (भ्रात्राय) बन्धुभावाय (शम्या) कर्मणा (तनूरुचम्) तन्वो रोचन्ते यस्मै तम् (पुत्रः) पुरु दुःखाद्रक्षकः (भवसि) (यः) (ते) तव (अविधत्) विधत्ते (त्वम्) (सखा) (सुशेवः) सुष्ठु सुखप्रदः (पासि) (आधृषः) समन्ताद्धर्षणं कुर्वतः ॥९॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा होमादिना सुसेवितोऽग्नी रक्षको भवति तथा भ्रातरः सखायः पुत्रा भ्रातॄन्मित्राणि पितॄंश्च सेवन्ताम् ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा होमातील अग्नी रक्षण करतो, तसे बंधू, मित्र, पुत्रांनी आपल्या बंधू, मित्र, पितरांचा स्वीकार करावा. ॥ ९ ॥