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त्वम॑ग्ने॒ सुभृ॑त उत्त॒मं वय॒स्तव॑ स्पा॒र्हे वर्ण॒ आ सं॒दृशि॒ श्रियः॑। त्वं वाजः॑ प्र॒तर॑णो बृ॒हन्न॑सि॒ त्वं र॒यिर्ब॑हु॒लो वि॒श्वत॑स्पृ॒थुः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvam agne subhṛta uttamaṁ vayas tava spārhe varṇa ā saṁdṛśi śriyaḥ | tvaṁ vājaḥ prataraṇo bṛhann asi tvaṁ rayir bahulo viśvatas pṛthuḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वम्। अ॒ग्ने॒। सुऽभृ॑तः। उ॒त्ऽत॒मम्। वयः॑। तव॑। स्पा॒र्हे। वर्णे॑। आ। स॒म्ऽदृशि॑। श्रियः॑। त्वम्। वाजः॑। प्र॒ऽतर॑णः। बृ॒हन्। अ॒सि॒। त्वम्। र॒यिः। ब॒हु॒लः। वि॒श्वतः॑। पृ॒थुः॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:1» मन्त्र:12 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:19» मन्त्र:2 | मण्डल:2» अनुवाक:1» मन्त्र:12


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) बिजुली के समान बलीजन जो (त्वम्) आप (रयिः) द्रव्यरूप (बहुलः) बहुत सुखों के ग्रहण करनेहारे (विश्वतः) सबसे (पृथुः) विस्तार को प्राप्त (सुभृतः) उत्तम कर्म जिन्होंने धारण किया (प्रतरणः) कठिनता से दुःखों के पार होते और (बृहन्) बढ़ते हुए (असि) हैं। जो (त्वम्) आप (वाजः) ज्ञानवान् हैं। जिन (तव) आपके (स्पार्हे) इच्छा करने और (संदृशि) अच्छे-प्रकार देखने योग्य (वर्णे) वर्ण में (उत्तमम्) उत्तम (वयः) मनोहर जीवन (आ श्रियः) और सब ओर से लक्ष्मी वर्त्तमान है। सो (त्वम्) आप अध्यापक हूजिये ॥१२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे विद्वान् जन गुण कर्म स्वभाव से बिजुली को जान और कार्य्यों में उसका अच्छे प्रकार प्रयोग कर श्रीमान् होते हैं और ब्रह्मचर्य से दीर्घायु होते हैं, वैसे सब विद्यायुक्त मनुष्यों को होना चाहिये ॥१२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे अग्ने यस्त्वं रयिर्बहुलो विश्वतस्पृथुः सुभृतः प्रतरणो बृहन्नसि यस्त्वं वाजोऽसि यस्य तव स्पार्हे संदृशि वर्ण उत्तमं वय आ श्रियश्च वर्त्तन्ते स त्वमध्यापको भव ॥१२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वम्) (अग्ने) विद्युदिव बलिष्ठ (सुभृतः) शोभनं कर्म भृतं येन सः (उत्तमम्) श्रेष्ठम् (वयः) कमनीयं जीवनम् (तव) (स्पार्हे) अभीप्सनीये (वर्णे) शुक्लादिगुणे (आ) (संदृशि) सम्यग्द्रष्टव्ये (श्रियः) लक्ष्मीः (त्वम्) (वाजः) ज्ञानवान् (प्रतरणः) यः प्रकृष्टतया दुःखानि तरति (बृहन्) वर्द्धमानः (असि) (त्वम्) (रयिः) द्रव्यरूपः (बहुलः) बहूनि सुखानि लाति (विश्वतः) सर्वतः (पृथुः) विस्तीर्णः ॥१२॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा विद्वांसो गुणकर्मस्वभावतो विद्युतं विदित्वा कार्येषु संप्रयुज्य श्रीमन्तो भवन्ति ब्रह्मचर्येण दीर्घायुषश्च जायन्ते तथा सर्वैर्विद्यायुक्तैर्मनुष्यैर्भवितव्यम् ॥१२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे विद्वान लोक गुण, कर्म, स्वभावाने विद्युतला जाणून कार्यात त्याचा चांगल्या प्रकारे प्रयोग करून श्रीमंत होतात व ब्रह्मचर्य पाळून दीर्घायू होतात तसे सर्व विद्यायुक्त माणसांनी बनले पाहिजे. ॥ १२ ॥