पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे अग्रणायक परमात्मन् ! (एतानि) ये (नवतिः-नव) निन्यानवे वर्ष जीवन के, सौवें वर्ष में मृत्यु हो जाती है, सामान्य शास्त्रनियम से जीवन के निन्यानवे वर्ष, जो ऐहिक-सांसारिक हैं, वे (अधिरथा सहस्रा) रमणीय मोक्षसम्बन्धी असंख्य अर्थात् अनन्त निन्यानवे वर्ष हो जाते हैं, (त्वे) तुझ में (आहुतानि) आश्रित हैं (तेभिः) उन अनन्त निन्यानवे वर्षों के द्वारा (पूर्वीः) श्रेष्ठ-अलौकिक मोक्षसम्बन्धी (तन्वः) देहों-ब्राह्मशरीरों को (वर्धस्व) बढ़ा-पुष्ट कर (नः) हमारे लिये (दूषितः) उपासित हुआ (दिवः) मोक्षधाम से (वृष्टिम्) आनन्दवृष्टि को (रिरीहि) प्रेरित कर, उसका दृश्य दिखा ॥१०॥
भावार्थभाषाः - मानव के जीवनसम्बन्धी सांसारिक वर्ष शास्त्रीय दृष्टि से सौवें वर्ष में मृत्यु हो जाने पर निन्यानवें वर्ष रह जाते हैं, वे रमणीय मोक्षसम्बन्धी असंख्य अनन्त गुणित निन्यानवें बन जाते हैं अर्थात् अनन्त निन्यानवें वर्ष बन जाते हैं, जो परमात्मा के आश्रय में होते हैं, वे अलौकिक ब्राह्म-ब्रह्म के आधार पर देहों में-शरीरों में परमात्मा द्वारा पुष्ट होते हैं ॥१०॥