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अति॒ विश्वा॑: परि॒ष्ठा स्ते॒न इ॑व व्र॒जम॑क्रमुः । ओष॑धी॒: प्राचु॑च्यवु॒र्यत्किं च॑ त॒न्वो॒३॒॑ रप॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ati viśvāḥ pariṣṭhā stena iva vrajam akramuḥ | oṣadhīḥ prācucyavur yat kiṁ ca tanvo rapaḥ ||

पद पाठ

अति॑ । विश्वाः॑ । प॒रि॒ऽस्थाः । स्ते॒नःऽइ॑व । व्र॒जम् । अ॒क्र॒मुः॒ । ओष॑धीः । प्र । अ॒चु॒च्य॒वुः॒ । यत् । किम् । च॒ । त॒न्वः॑ । रपः॑ ॥ १०.९७.१०

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:97» मन्त्र:10 | अष्टक:8» अध्याय:5» वर्ग:9» मन्त्र:5 | मण्डल:10» अनुवाक:8» मन्त्र:10


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (स्तेन-इव) चोर जैसे (व्रजम्) गोस्थान को (अति-अक्रमुः) अतिक्रान्त करता है, तोड़ता है, वैसे (विश्वा) सारी (परिष्ठाः) सर्वत्र फैलनेवाली (ओषधीः) औषधियाँ (तन्वः) शरीर का (यत्-किं च रपः) जो कुछ दोष है, (प्र अचुच्यवुः) उसे च्युत करो, निकाल दो ॥१०॥
भावार्थभाषाः - चोर जैसे गौशाला में गुप्त रूप से तोड़-फोड़ कर गौ को बाहर निकाल देते हैं, ऐसे ही ओषधियाँ शरीर में घुसकर रोगस्थानों को खोलकर उनमें से रोगों को बाहर निकाल ले आती हैं, ऐसी प्रभावशाली ओषधियाँ सेवन करने योग्य हैं ॥१०॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (स्तेन-इव वज्रम्-अति-अक्रमुः) चोरो यथा गोस्थानमतिक्राम्यति त्रोटयति तथा (विश्वाः-परिष्ठाः-ओषधीः) सर्वाः सर्वतो वर्त्तमाना ओषधयः (तन्वः-यत्-किं च रपः) शरीरस्य यत्किं च रपः शरीरनाशको दोषोऽस्ति (प्र अचुच्यवुः) तं प्रच्युतं कुरुत ॥१०॥