पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जब (सचा) साथ मिलकर (अत्कम्) उस आततायी अत्ता सम्भोगी नाशक व्यभिचारी दस्यु को देखकर (आसु जहतीषु) इन घर या राष्ट्र छोड़ जानेवाली स्त्रियाँ या प्रजाओं में (अमानुषीषु) मनुष्य सम्पर्करहित पवित्र आचरणवालियों में (मानुषः-भुज्युः-ताः-निषेवे) मैं मनुष्यों में श्रेष्ठ पालक पति या मनुष्यों का राजा पालक उन स्त्रियों या प्रजाओं की निरन्तर सेवा रक्षा करूँ, अतः (मत् स्म) मेरे पास से (अपतरसन्ती) व्याध के भय से भागती हुई हरिणी की भाँति (न-अत्रसन्) न भय करे-उस व्यभिचारी या दस्यु से घबराकर न भागे (रथस्पृशः-अश्वाः-न) रथ में युक्त जुड़े घोड़ों के समान पत्नियाँ या प्रजाएँ घर या राष्ट्र का वहन करें ॥८॥
भावार्थभाषाः - बलात् सम्भोग करनेवाले व्यभिचारी या दस्यु घरों में राष्ट्र में घुसे देखकर पवित्र स्त्रियाँ या प्रजाएँ भय से जब भागने लगें, तो पति और राजा पूर्ण आश्वासन देकर उनकी रक्षा करे और घर में राष्ट्र में स्थिर रहने का प्रबन्ध करे, उन दुष्टों को दण्ड दे ॥८॥