पदार्थान्वयभाषाः - (अस्मिन् जायमाने) इस पुरूरवा वा-बहुत प्रशंसक-बहुत शासक पतिरूप से तथा प्रजापतिरूप से हो जाने पर (ग्नाः) कुलभार्याएँ या प्रजाएँ (सम् आसत) सङ्गत होती हैं (उत-ईम्) और इसको (स्वगूर्ताः-नद्यः) स्वगतिवाली नदियों के समान वे स्त्रियाँ या प्रजाएँ (अवर्धन्) बढ़ाती हैं तथा (पुरूरवः) हे बहुत शुभ वक्ता बहुत कल्याण के आदेष्टा (यत्) जब कि (त्वा) तुझे (देवाः) विद्वान् ऋत्विग् या पुरोहित (दस्युहत्याय) क्षीण करनेवाले व्यभिचारी या दस्यु का हनन करने के लिए (रणाय) संग्राम के लिए (अवर्धयन्) बढ़ाते हैं-बढ़ावा देते हैं ॥७॥
भावार्थभाषाः - विवाह संस्कार में जब स्त्री का पति बन जाता है अथवा राजसूययज्ञ में प्रजापति बन जाता है तो उसे पारिवारिक स्त्रियाँ या राष्ट्र की प्रजाएँ सङ्गत होकर नदियों के समान-नदियाँ जैसे राष्ट्र को समृद्ध करती हैं-बढ़ावा देती हैं-इसी प्रकार पुरोहित और ऋत्विक् घर में घुसनेवाले या राष्ट्र में घुसनेवाले नाशकारी व्यभिचारी तथा दस्यु को हनन करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिये ॥७॥