पदार्थान्वयभाषाः - (यदि सा-उषः) यदि वह तेजस्विनी भार्या या प्रजा (श्वशुराय) कुत्ते के समान हिंसक व्यभिचारी या दस्यु के लिए (वसु) वास (वयः) अन्न (दधती) धारण करती है-देती है, (अन्ति गृहात्) घर के गुप्त स्थान या राष्ट्र के मध्य (वष्टि) उसे व्यभिचारभावना से चाहता है (अस्तं ननक्षे) घर को व्याप जाता है (यस्मिन्) जिस घर में या राष्ट्र में (दिवा नक्तम्) दिन रात (चाकन्) सम्भोग की इच्छा करता रहता है (वैतसेन) पुरुषेन्द्रिय के द्वारा (श्नथिता) हिंसित या ताड़ित होवे या होती है ॥४॥
भावार्थभाषाः - यौवनसम्पन्न स्त्री तथा प्रजा यदि व्यभिचारी जार या दस्यु को घर या राष्ट्र में वास या भोजन दे, तो वह जार व्यभिचारी दस्यु स्त्री या प्रजा को कामदृष्टि से देखता है और दिनरात कामवश अपनी गुप्तेन्द्रिय से स्त्री या प्रजा को हिंसित या ताड़ित करता है। अतः अज्ञात परपुरुष घर में स्त्री तथा दस्यु को-शत्रु को घर राष्ट्र में प्रजा वास और भोजन न दे ॥४॥