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इषु॒र्न श्रि॒य इ॑षु॒धेर॑स॒ना गो॒षाः श॑त॒सा न रंहि॑: । अ॒वीरे॒ क्रतौ॒ वि द॑विद्युत॒न्नोरा॒ न मा॒युं चि॑तयन्त॒ धुन॑यः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

iṣur na śriya iṣudher asanā goṣāḥ śatasā na raṁhiḥ | avīre kratau vi davidyutan norā na māyuṁ citayanta dhunayaḥ ||

पद पाठ

इषुः॑ । न । श्रि॒ये । इ॒षु॒ऽधेः । अ॒स॒ना । गो॒ऽसाः । श॒त॒ऽसाः । न । रंहिः॑ । अ॒वीरे॑ । क्रतौ॑ । वि । द॒वि॒द्यु॒त॒त् । न । उरा॑ । न । मा॒युम् । चि॒त॒य॒न्त॒ । धुन॑यः ॥ १०.९५.३

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:95» मन्त्र:3 | अष्टक:8» अध्याय:5» वर्ग:1» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:8» मन्त्र:3


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इषुधेः) इषु कोश से (असना) फेंकने-योग्य-फेंका जानेवाला (इषुः) बाण (श्रिये न) विजयलक्ष्मी गृहशोभा के लिए समर्थ नहीं होता है, तुझ भार्या तुझ प्रजा के सहयोग के बिना, (रंहिः-न) मैं वेगवान् बलवान् भी नहीं बिना तेरे सहयोग के (गोषाः-शतसाः) शत्रुभूमि का भोक्ता या बहुत धन का भोक्ता (अवीरे) तुझ वीर पत्नी से रहित या वीर प्रजा से रहित (उरा क्रतौ) विस्तृत यज्ञकर्म में या संग्रामकर्म में (न विदविद्युतत्) मेरा वेग प्रकाशित नहीं होता बिना तेरे सहयोग के (धुनयः) शत्रुओं को कंपानेवाले हमारे सैनिक (मायुम्) हमारे आदेश को (न चिन्तयन्त) नहीं मानते हैं बिना तेरे सहयोग के ॥३॥
भावार्थभाषाः - भार्या या राजा प्रजा के सहयोग के बिना तुणीर या बाणकोश से निकला हुआ बाण विजयलक्ष्मी प्राप्त कराने में समर्थ नहीं होता और बलवान् शत्रुभूमि को भोगनेवाला बहुत धन को भोगनेवाला नहीं बनता है बिना पत्नी और प्रजा के सहयोग के, यज्ञकर्म में और संग्रामकर्म में बिना पत्नी और प्रजा के शासन प्रकाशित नहीं होता है तथा शत्रुओं को कंपानेवाले सैनिक भी आदेश को नहीं मानते हैं पत्नी और प्रजा के सहयोग के बिना, इसलिए राजा को पत्नी और प्रजा का अनादर न करके सहयोगिनी बनाना चाहिए ॥३॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इषुधेः-असना-इषुः) हे जाये प्रजे वा सतां तव सहाय्येन विना-इषुकोशात् क्षेपणीया खल्विषुः (न श्रिये) न विजयलक्ष्म्यै समर्था भवन्ति (रंहिः-न) न अहं वेगवान् बलवानपि (गोषाः शतसाः) शत्रुभूमेर्भोक्ता बहुधनस्य भोक्ता (अवीरे-उरा क्रतौ) वीरभार्यया वीरप्रजयारहिते विस्तृते यज्ञकर्मणि सङ्ग्रामकर्मणि वा (न विदविद्युतत्) न हि मम वेगो विद्योतते (धुनयः) शत्रूणां कम्पयितारोऽस्माकं सैनिकाः (मायुम्) अस्माकं शब्दमादेशं (न-चिन्तयन्त) न मन्यन्ते ॥३।