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किमे॒ता वा॒चा कृ॑णवा॒ तवा॒हं प्राक्र॑मिषमु॒षसा॑मग्रि॒येव॑ । पुरू॑रव॒: पुन॒रस्तं॒ परे॑हि दुराप॒ना वात॑ इवा॒हम॑स्मि ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kim etā vācā kṛṇavā tavāham prākramiṣam uṣasām agriyeva | purūravaḥ punar astam parehi durāpanā vāta ivāham asmi ||

पद पाठ

किम् । ए॒ता । वा॒चा । कृ॒ण॒व॒ । तव॑ । अ॒हम् । प्र । अ॒क्र॒मि॒ष॒म् । उ॒षसा॑म् । अ॒ग्रि॒याऽइ॑व । पुरू॑रवः । पुनः॑ । अस्त॑म् । परा॑ । इ॒हि॒ । दुः॒ऽआ॒प॒ना । वातः॑ऽइव । अ॒हम् । अ॒स्मि॒ ॥ १०.९५.२

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:95» मन्त्र:2 | अष्टक:8» अध्याय:5» वर्ग:1» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:8» मन्त्र:2


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (एता वाचा) इस मन्त्रणा वाणी से (किं कृणव) क्या करें-क्या करेंगे (तव-अहम्) तेरी मैं हूँ (उषसाम्) प्रभात ज्योतियों की (अग्रिया-इव) पूर्व ज्योति जैसी (प्र अक्रमिषम्) चली जाती हूँ-तेरे शासन में चलती हूँ (पुरूरवः) हे बहुत प्रकार से उपदेश करनेवाले पति (पुनः-अस्तम्-परा इहि) विशिष्ट सदन या शासन को प्राप्त कर (वातः-इव) वायु के समान (दुरापना) अन्य से दुष्प्राप्य (अहम्-अस्मि) मैं प्राप्त हूँ ॥२॥
भावार्थभाषाः - गुप्त मन्त्रणा की आवश्यकता नहीं होती है, जबकि विवाह हो जाने के बाद पत्नी पति की बन जाती है, प्रजा राष्ट्रपति की बन जाती है। प्रातः-काल की उषा जैसे सूर्य के साथ चलती है, ऐसे पत्नी पति के आदेश में और प्रजा राष्ट्रपति के आदेश में चला करती है। अपनी पत्नी और अपनी प्रजा अन्य पुरुष या अन्य राजा से प्राप्त करने योग्य नहीं हुआ करती ॥२॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (एता वाचा किं कृणव) एतया मन्त्रणा-वाचा किं कुर्याव-करिष्यावः (तव-अहम्) तवाहमस्मि (उषसाम्-अग्रिया-इव प्र अक्रमिषम्) प्रभातवेलानामासां या खल्वग्रिया-पूर्वाभाश्चलिता भवति तथा प्रचलामि तव शासने चलामि (पुरूरवः पुनः-अस्तं परा इहि) हे बहुप्रकारेण शासनं घोषयितः पते मम पते ! प्रजायाः पते वा विशिष्टं सदनं शासनस्थानं वा प्राप्नुहि “पुनर्-विशेषः” [अव्ययार्थे निबन्धनम्] (वातः-इव दुरापना-अहम् अस्मि) वायुरिवान्येन दुष्प्राप्याऽहमस्मि ॥२॥