पदार्थान्वयभाषाः - (अद्रयः) मन्त्रप्रवचन करनेवाले (विमोचने-यामन्) विमोक्ष मार्ग के निमित्त (तत्-इत्-वदन्ति) उस ही विमोक्षसम्बन्धी उपदेश को बोलते हैं (अञ्जस्पाः-इव घ-इत्) अनायास-स्वभाव से रक्षा करनेवाले (उपब्दिभिः) अपनी वाणियों से संसारमार्ग के निमित्त उपदेश करते हैं (धान्यकृतः) धान्य करनेवाले किसान (बीजम्) बीज को (वपन्तः-इव) भूमि-खेत में बोते हुए के समान (सोमं पृञ्चन्ति) शान्तस्वरूप परमात्मा को अपनी आत्मा में संयुक्त करते हैं (बप्सतः) कर्मफल को भोगनेवाले (न मिनन्ति) कर्मों को नष्ट नहीं करते हैं-लुप्त नहीं करते हैं, किन्तु निरन्तर कर्म करते हैं ॥१३॥
भावार्थभाषाः - मन्त्रप्रवचन करनेवाले विद्वान् मोक्षमार्ग का उपदेश किया करते हैं, साधारण उपदेशक सांसारिक मार्ग का उपदेश करते हैं। जैसे किसान लोग खेत में बीज बोते हैं-भावी अन्नलाभ के लिए, ऐसे ध्यानीजन भावी अध्यात्मलाभ के लिए शान्तस्वरूप परमात्मा को अपने आत्मा में संगत करते हैं। सांसारिक जन हो या आध्यात्मिक जन हो, उत्तम सुखभोग करने के हेतु साधारण कर्म और अध्यात्म कर्म का लोप नहीं करते हैं ॥१३॥