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वातो॑पधूत इषि॒तो वशाँ॒ अनु॑ तृ॒षु यदन्ना॒ वेवि॑षद्वि॒तिष्ठ॑से । आ ते॑ यतन्ते र॒थ्यो॒३॒॑ यथा॒ पृथ॒क्छर्धां॑स्यग्ने अ॒जरा॑णि॒ धक्ष॑तः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vātopadhūta iṣito vaśām̐ anu tṛṣu yad annā veviṣad vitiṣṭhase | ā te yatante rathyo yathā pṛthak chardhāṁsy agne ajarāṇi dhakṣataḥ ||

पद पाठ

वात॑ऽउपधूतः । इ॒षि॒तः । वशा॑न् । अनु॑ । तृ॒षु । यत् । अन्ना॑ । वेवि॑षत् । व्ऽतिष्ठ॑से । आ । ते॒ । य॒त॒न्ते॒ । र॒थ्याः॑ । यथा॑ । पृथ॑क् । शर्धां॑सि । अ॒ग्ने॒ । अ॒जरा॑णि । धक्ष॑तः ॥ १०.९१.७

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:91» मन्त्र:7 | अष्टक:8» अध्याय:4» वर्ग:21» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:8» मन्त्र:7


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वातोपधूतः) प्रणायाम योगाभ्यास से उपगत-साक्षात् हुआ परमात्मा अथवा वायु से प्रेरित भौतिक अग्नि (वशान्-अनु) कामना करते हुए स्तोताओं के प्रति या वश में आनेवाले वनस्पतियों के प्रति (तृषु) शीघ्र (यत्-अन्ना) जो अदनीय चराचर वस्तुओं के प्रति (वेविषत्) व्याप्त होता हुआ (वितिष्ठसे) विशेषरूप से ठहरता है-अधिकार करता है या स्वायत्त करके रहता है (अग्ने) हे परमात्मन् ! या अग्ने ! (ते धक्षतः) तेरे दान करते हुए या जलाते हुए (अजराणि शर्धांसि) स्थिर बल हैं (रथ्यः-यथा पृथक्-आ यतन्ते) रथ में जुड़े घोड़े जैसे पृथक्-पृथक् कार्य के लिए जाते हैं, ऐसे तेरे बल पराक्रम करते हैं ॥७॥
भावार्थभाषाः - प्राणयाम आदि योगाभ्यास के द्वारा कामना करनेवाले स्तोताओं के प्रति परमात्मा साक्षात् होता है, उसके गुण पराक्रम कल्याणदान के लिए उसके अन्दर शीघ्र प्राप्त होते हैं एवं वायु के द्वारा प्रेरित अग्नि वनस्पतियों के अन्दर जलाने को घुसता चला जाता है उसके दाहक वेग उन्हें शीघ्र प्राप्त करते है ॥७॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वातोपधूतः) प्राणायामेन योगाभ्यासेन उपगतः परमात्मा यद्वा वायुना प्रेरितोऽग्निः (वशान्-अनु) कामयमानान् स्तोतॄननु वश्यान् वनस्पतीननु (तृषु) शीघ्रम् (यत्-अन्नावेविषत्-वितिष्ठसे) अद्यानि-चराचरात्मकानि वस्तूनि प्रति व्याप्नुवन् विशेषेण तिष्ठसे, ओषधिं वनस्पतीन् वा स्वायत्तीकृत्य वितिष्ठसे (अग्ने) हे परमात्मन् ! अग्ने वा (ते-अजराणि धक्षतः शर्धांसि) तव ददतो स्थिराणि बलानि “शर्ध बलनाम” [निघ० २।९] दहतो वा (रथ्यः-यथा पृथक्-आ यतन्ते) रथे युक्ता अश्वा इव पृथक् पृथक् कार्याय गच्छन्ति “यतते गतिकर्मा” [निघ० २।१४] ॥७॥