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तस्मा॒ अरं॑ गमाम वो॒ यस्य॒ क्षया॑य॒ जिन्व॑थ । आपो॑ ज॒नय॑था च नः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tasmā araṁ gamāma vo yasya kṣayāya jinvatha | āpo janayathā ca naḥ ||

पद पाठ

तस्मै॑ । अर॑म् । ग॒मा॒म॒ । वः॒ । यस्य॑ । क्षया॑य । जिन्व॑थ । आपः॑ । ज॒नय॑थ । च॒ । नः॒ ॥ १०.९.३

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:9» मन्त्र:3 | अष्टक:7» अध्याय:6» वर्ग:5» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:1» मन्त्र:3


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्य) जिस रस के (क्षयाय) निवास के लिए-सात्म्य करने के लिए-संस्थापित करने के लिए (आपः) हे जलो ! (जिन्वथ) तृप्त करते हो (तस्मै) उस रस के लिए-उसकी पुष्टि के लिए (वः) तुम्हें (अरं गमाम) हम पूर्णरूप से सेवन करते हैं (च) और (नः) हमें (जनयथ) प्रादुर्भूत-समृद्ध-पुष्ट करते हो ॥३॥
भावार्थभाषाः - जल का सार भाग शरीर में सात्म्य हो जाता है, वह समृद्ध करने, पुष्ट करने का निमित्त बनता है। इसी प्रकार आप विद्वान् जनों का ज्ञान-सार आत्मा में बैठ जाता है, जो आत्मा को बल देता है ॥३॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्य क्षयाय) यस्य रसस्य निवासाय शरीरे सात्म्यकरणाय संस्थापनाय “क्षि निवासगत्योः” [तुदादिः] (आपः-जिन्वथ) हे आपः ! तर्पयथ (तस्मै वः-अरं गमाम) तत्प्राप्तये युष्मान् पूर्णरूपेण सेवेमहि (च) यतश्च (नः-जनयथ) अस्मान् प्रादुर्भावयथ पोषयथ, उक्तं यथा-“वेत्थ यदा पञ्चम्यामाहुतावापः पुरुषवचसो भवन्ति” [छान्दो० ५।३।३] ॥३॥