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आपो॒ हि ष्ठा म॑यो॒भुव॒स्ता न॑ ऊ॒र्जे द॑धातन । म॒हे रणा॑य॒ चक्ष॑से ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

āpo hi ṣṭhā mayobhuvas tā na ūrje dadhātana | mahe raṇāya cakṣase ||

पद पाठ

आपः॑ । हि । स्थ । म॒यः॒ऽभुवः॑ । ताः । नः॒ । ऊ॒र्जे । द॒धा॒त॒न॒ । म॒हे । रणा॑य । चक्ष॑से ॥ १०.९.१

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:9» मन्त्र:1 | अष्टक:7» अध्याय:6» वर्ग:5» मन्त्र:1 | मण्डल:10» अनुवाक:1» मन्त्र:1


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ब्रह्ममुनि

इस सूक्त में ‘आपः’ शब्द से जलों के गुण और लाभ बतलाये गये हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (ताः-आपः) वे तुम जलो ! (मयः-भुवः) सुख को भावित कराने वाले-सुखसम्पादक (हि स्थ) अवश्य हो (नः) हमें (ऊर्जे) जीवनबल के लिये (महे रणाय चक्षसे) महान् रमणीय दर्शन के लिए (दधातन) धारण करो ॥१॥
भावार्थभाषाः - जल अवश्य सुखकारण और जीवनबल देनेवाले हैं। यथावसर शीतजल या उष्णजल उपयुक्त हुआ तथा महान् रमणीय दर्शन बाहिरी दृष्टि से नेत्र-शक्ति धारण करानेवाला, भीतरी दृष्टि से मानस शान्ति वा अध्यात्मदर्शन कराने का हेतु भी है। इसी प्रकार आप विद्वान् जन भी सुखसाधक, जीवन में प्रेरणा देनेवाले और अध्यात्मदर्शन के निमित्त हैं। उनका सङ्ग करना चाहिए ॥१॥
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ब्रह्ममुनि

अत्र सूक्ते ‘आपः’ इति शब्देन जलानां गुणलाभाः प्रोच्यन्ते।

पदार्थान्वयभाषाः - (ताः-आपः) ता यूयमापः ! (मयः-भुवः) सुखस्य भावयित्र्यः-सुखसम्पादिका वा “मयः सुखनाम” [निघ० ३।६] (हि स्थ) अवश्यं स्थ (नः) अस्मान् (ऊर्जे) जीवनबलाय (महे रणाय चक्षसे) महते रमणीयाय दर्शनाय (दधातन) धारयत ॥१॥