पदार्थान्वयभाषाः - (सः-आप्त्यः) वह सर्वज्ञानगुणप्राप्त व्याप्त परमात्मा में स्थित या वर्तमान आत्मा (पित्र्याणि-आयुधानि-विद्वान्) पिता परमात्मा की सङ्गति से प्राप्त अध्यात्मबलरूप शस्त्रों को प्राप्त हुआ (इन्द्रेषितः-अभि-अयुध्यत्) ऐश्वर्यवान् परमात्मा द्वारा प्रेरित-प्रकर्ष को प्राप्त हुआ युद्ध करता है- संघर्ष करता है (त्रिशीर्षाणं सप्तरश्मिं जघन्वान्) तीन शिरोंवाले शरीर के समान स्थूलसूक्ष्मकारण शिरोंवाले शरीर तथा सात रश्मियों-प्रग्रहों-लगामों को अपने-अपने विषयों में लगामों के समान खींचनेवाले ज्ञानेन्द्रियों मन और उपस्थेन्द्रियवाले शरीररूप विरोधी को परास्त करता है-त्यागता है (त्रितः-त्वाष्ट्रस्य गाः-चित्--ससृजे) आत्मा शरीरबीजभाव से उत्पन्न पुनर्जन्म में ले जानेवाली इन्द्रियवासनालगामों को निकाल फेंकता है ॥८॥
भावार्थभाषाः - योग द्वारा परमात्मा से आत्मा को अध्यात्मबल प्राप्त होता है, तो स्थूलसूक्ष्मकारणशरीरोंवाले और सात लगामों-पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ मन तथा उपस्थेन्द्रियवाले शरीर को वह पराजित करता है। शरीर के कारणरूप गर्भधारण करानेवाले गर्भबीजप्रभाव की वासनाओं को भी निकाल फेंकता है ॥८॥