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भुवो॑ य॒ज्ञस्य॒ रज॑सश्च ने॒ता यत्रा॑ नि॒युद्भि॒: सच॑से शि॒वाभि॑: । दि॒वि मू॒र्धानं॑ दधिषे स्व॒र्षां जि॒ह्वाम॑ग्ने चकृषे हव्य॒वाह॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

bhuvo yajñasya rajasaś ca netā yatrā niyudbhiḥ sacase śivābhiḥ | divi mūrdhānaṁ dadhiṣe svarṣāṁ jihvām agne cakṛṣe havyavāham ||

पद पाठ

भुवः॑ । य॒ज्ञस्य॑ । रज॑सः । च॒ । ने॒ता । यत्र॑ । नि॒युत्ऽभिः॑ । सच॑से । शि॒वाभिः॑ । दि॒वि । मू॒र्धान॑म् । द॒धि॒षे॒ । स्वः॒ऽसाम् । जि॒ह्वाम् । अ॒ग्ने॒ । च॒कृ॒षे॒ । ह॒व्य॒ऽवाह॑म् ॥ १०.८.६

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:8» मन्त्र:6 | अष्टक:7» अध्याय:6» वर्ग:4» मन्त्र:1 | मण्डल:10» अनुवाक:1» मन्त्र:6


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे पार्थिव अग्नि ! तू (जिह्वां स्वर्षां हव्यवाहं चकृषे) अपनी ज्वाला को सुखसुम्भाजन करानेवाली होने योग्य वस्तु को वहन करनेवाली करता है-बनाता है, तो (दिवि मूर्धानं दधिषे) द्युलोक में वर्तमान सूर्य को धारण करता है-आश्रय बनाता है, हव्य पदार्थ को ऊपर ले जाने को-सूर्य की ओर हव्य पदार्थ को प्रेरित करता है (यत्र शिवाभिः-नियुद्भिः-सचसे) जिस देश में कल्याण करनेवाली नियत आहुतियों के साथ सङ्गत होता है, तो (यज्ञस्य रजसः-च नेता भुवः) उस देश में तू यज्ञ का और उस रञ्जनात्मक प्रदेश का नेता-सम्पादक होता है ॥६॥
भावार्थभाषाः - अग्नि की ज्वाला सुखसम्भाजिका है। वह होमे हुए पदार्थ वहन करके सूर्य तक ले जाती है। नियत आहुतियों से संयुक्त होकर ही अग्नि यज्ञ को और यज्ञ से रञ्जनीय हुए देश या वातावरण को उत्तम बनाती है। ऐसे ही विद्वान् की वाणी मीठी और कल्याणकारी होकर समाज में ऊपर तक पहुँचकर वातावरण को अच्छा बनाती है ॥६॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे अग्ने ! यदा त्वं (जिह्वां स्वर्षां हव्यवाहं चकृषे) स्वज्वालां सुखसम्भाजिकां “स्वं सुखं सन्ति सम्भजति यया सा स्वर्षा, ताम्” [यजु० १३।१५ दयानन्दः ] “षण सम्भक्तौ” [भ्वादिः] होतुमर्ह्यस्य वोढ्रीं करोषि (दिवि मूर्धानं दधिषे) तदा त्वं द्युलोके वर्तमानं सूर्यम् “एष वै मूर्धा य एष सूर्यः तपति [श० १३।४।१।१३] प्रति धारयसि-आश्रयसि-तद्धव्यं प्रसारयितुम्, उक्तं यथा−“अग्नौ प्रास्ताहुतिः सम्यगादित्यमुपतिष्ठति” [मनु० ३।६७] (यत्र शिवाभिः-नियुद्भिः-सचसे) यत्र देशकल्याणकरीभिः-नियताहुतिभिः “नियुतो नियमनात्” [निरु० ५।२७] सह समवैति (यज्ञस्य रजसः-च नेता भुवः) तत्र त्वं यज्ञस्य तत्फलभूतस्य रञ्जनीयप्रदेशस्य च नेता सम्पादको भवसि ॥६॥