वांछित मन्त्र चुनें

इ॒न्द्रा॒ग्नी वृ॑त्र॒हत्ये॑षु॒ सत्प॑ती मि॒थो हि॑न्वा॒ना त॒न्वा॒३॒॑ समो॑कसा । अ॒न्तरि॑क्षं॒ मह्या प॑प्रु॒रोज॑सा॒ सोमो॑ घृत॒श्रीर्म॑हि॒मान॑मी॒रय॑न् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

indrāgnī vṛtrahatyeṣu satpatī mitho hinvānā tanvā samokasā | antarikṣam mahy ā paprur ojasā somo ghṛtaśrīr mahimānam īrayan ||

पद पाठ

इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑ । वृ॒त्र॒ऽहत्ये॑षु । सत्प॑ती॒ इति॒ सत्ऽप॑ती । मि॒थः । हि॒न्वा॒ना । त॒न्वा॑ । सम्ऽओ॑कसा । अ॒न्तरि॑क्षम् । महि॑ । आ । प॒प्रुः॒ । ओज॑सा । सोमः॑ । घृ॒त॒ऽश्रीः । म॒हि॒मान॑म् । ई॒रय॑न् ॥ १०.६५.२

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:65» मन्त्र:2 | अष्टक:8» अध्याय:2» वर्ग:9» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:5» मन्त्र:2


बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वृत्रहत्येषु) अज्ञान नाश करने के व्यवहारों में (सत्पती-इन्द्राग्नी मिथः-हिन्वाना) सत् वस्तु के पालक अग्नि और वायु परस्पर प्रेरित करते हुए-एक दूसरे को बल देते हुए (तन्वा समोकसा) अपनी शक्ति से समस्थानवाले होते हुए-यन्त्र में प्रयुक्त हुए (घृतश्रीः सोमः) रस का आश्रयरस का उत्पादक चन्द्रमा (महिमानम्-ईरयन्) महत्त्व को प्रेरित करता हुआ (महि-ओजसा) महान् तेज से (अन्तरिक्षम्-आपप्रुः) ये सब मेरी वाणी को पूर्ण करें-सफल करें ॥२॥
भावार्थभाषाः - अज्ञान नाश करने के लिए अग्नि और वायु, ये दो महान् शक्तिशाली पदार्थ हैं। समस्त वस्तुओं के यथार्थ स्वरूप को दर्शाते हैं। किसी यन्त्र में प्रयुक्त होकर बड़ा कार्य करते हैं। इसी प्रकार चन्द्रमा भी ओषधियों में रस प्रेरित करता है। इन सबका ज्ञान वर्णन करने में समर्थ होना चाहिए ॥२॥
बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वृत्रहत्येषु) अज्ञाननाशनव्यवहारेषु (सत्पती इन्द्राग्नी मिथः-हिन्वाना) सद्वस्तुपालकौ-अग्निवायू परस्परं प्रेरयन्तौ (तन्वा समोकसा) स्वशक्त्या समस्थानौ सन्तौ यन्त्रप्रयुक्तौ (घृतश्रीः सोमः) रसाश्रयः-रसोत्पादकश्चन्द्रमाः (महिमानम्-ईरयन्) महत्त्वं प्रेरयन् (महि-ओजसा) महता तेजसा (अन्तरिक्षम्-आपप्रुः) एते सर्वे मम वाचमापूरयन्तु “वागित्यन्तरिक्षम्” [जै० उ० ४।११।१।११] ॥२॥