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ते नो॒ अर्व॑न्तो हवन॒श्रुतो॒ हवं॒ विश्वे॑ शृण्वन्तु वा॒जिनो॑ मि॒तद्र॑वः । स॒ह॒स्र॒सा मे॒धसा॑ताविव॒ त्मना॑ म॒हो ये धनं॑ समि॒थेषु॑ जभ्रि॒रे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

te no arvanto havanaśruto havaṁ viśve śṛṇvantu vājino mitadravaḥ | sahasrasā medhasātāv iva tmanā maho ye dhanaṁ samitheṣu jabhrire ||

पद पाठ

ते । नः॒ । अर्व॑न्तः । ह॒व॒न॒ऽश्रुतः॑ । हव॑म् । विश्वे॑ । शृ॒ण्व॒न्तु॒ । वा॒जिनः॑ । मि॒तऽद्र॑वः । स॒ह॒स्र॒ऽसाः । मे॒धसा॑तौऽइव । त्मना॑ । म॒हः । ये । धन॑म् । स॒म्ऽइ॒थेषु॑ । ज॒भ्रि॒रे ॥ १०.६४.६

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:64» मन्त्र:6 | अष्टक:8» अध्याय:2» वर्ग:7» मन्त्र:1 | मण्डल:10» अनुवाक:5» मन्त्र:6


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ते-अर्वन्तः) वे विद्वान्-उच्चविज्ञानवाले (हवनश्रुतः) जो ह्वान-प्रार्थनावचन को सुनते हैं-स्वीकार करते हैं (ते वाजिनः-मितद्रवः) वे आत्मबलसम्पन्न शास्त्रप्रमाणित आचरण करनेवाले (विश्वे शृण्वन्तु) वे सब प्रार्थनावचन को सुनें-स्वीकार करें (सहस्रसा मेघसातौ-इव) बहुत विज्ञानसम्भक्ति में अर्थात् बहुत ज्ञानवाली गोष्ठी में (त्मना) आत्मा से अर्थात् शिष्यभाव से आत्मा को समर्पण करनेवाले के द्वारा (ये समिथेषु) जो अज्ञानादि संग्रामों में प्रवृत्त हुए-हुए हैं (धनं जभ्रिरे) ज्ञान धन को ग्रहण कराते हैं ॥६॥
भावार्थभाषाः - ऊँचे विद्वान् शास्त्र अनुसार आचरण करते हैं। वे ज्ञानप्राप्त कराने की प्रार्थना को अवश्य स्वीकार करते हैं। जब कोई इनकी गोष्ठी में शिष्यभाव से आता है या आवे और जो अज्ञान आदि के साथ संग्राम करने का इच्छुक होता है, उसे वे ज्ञान प्रदान करते हैं ॥६॥