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येभ्यो॒ होत्रां॑ प्रथ॒मामा॑ये॒जे मनु॒: समि॑द्धाग्नि॒र्मन॑सा स॒प्त होतृ॑भिः । त आ॑दित्या॒ अभ॑यं॒ शर्म॑ यच्छत सु॒गा न॑: कर्त सु॒पथा॑ स्व॒स्तये॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yebhyo hotrām prathamām āyeje manuḥ samiddhāgnir manasā sapta hotṛbhiḥ | ta ādityā abhayaṁ śarma yacchata sugā naḥ karta supathā svastaye ||

पद पाठ

येभ्यः॑ । होत्रा॑म् । प्र॒थ॒माम् । आ॒ऽये॒जे । मनुः॑ । समि॑द्धऽअग्निः । मन॑सा । स॒प्त । होतृ॑ऽभिः । ते । आ॒दि॒त्याः॒ । अभ॑यम् । शर्म॑ । य॒च्छ॒त॒ । सु॒ऽगा । नः॒ । क॒र्त॒ । सु॒ऽपथा॑ । स्व॒स्तये॑ ॥ १०.६३.७

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:63» मन्त्र:7 | अष्टक:8» अध्याय:2» वर्ग:4» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:5» मन्त्र:7


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (समिद्धाग्निः-मनुः) अग्रणायक परमात्मा जिसने साक्षात् कर लिया, ऐसा मननशील उपासक (येभ्यः) जिन जीवन्मुक्त विद्वानों से (प्रथमां होत्रां मनसा-आयजे) प्रमुख वेदरूप वाणी को या उसमें प्रतिपादित स्तुति को अवधान से आत्मसात् करता है-अपनाता है (सप्तहोतृभिः) सात संख्यावाले ग्रहणकर्ता साधनों-मन बुद्धि चित्त अहङ्कार श्रोत्र नेत्र वाणियों से  (ते-आदित्याः) वे अखण्डज्ञान ब्रह्मचर्यवाले (नः-अभयं शर्म यच्छत) हमारे लिए भयरहित सुख प्रदान करें (सुपथा सुगा कर्त) शोभन पथवाले अच्छे गन्तव्य-ज्ञानसम्पादन करो (स्वस्तये) कल्याण के लिए ॥७॥
भावार्थभाषाः - ऐसे जीवन्मुक्त, जिन्होंने मन बुद्धि चित्त अहङ्कार श्रोत्र नेत्र और वाणी को परमात्मा में समर्पित किया हुआ है, उनसे वेद का ज्ञान तथा वेदोक्त स्तुति का शिक्षण लेकर अपने अन्दर परमात्मा का साक्षात् करे, यह कल्याण का साधन है ॥७॥