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प॒रा॒वतो॒ ये दिधि॑षन्त॒ आप्यं॒ मनु॑प्रीतासो॒ जनि॑मा वि॒वस्व॑तः । य॒याते॒र्ये न॑हु॒ष्य॑स्य ब॒र्हिषि॑ दे॒वा आस॑ते॒ ते अधि॑ ब्रुवन्तु नः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

parāvato ye didhiṣanta āpyam manuprītāso janimā vivasvataḥ | yayāter ye nahuṣyasya barhiṣi devā āsate te adhi bruvantu naḥ ||

पद पाठ

प॒रा॒ऽवतः॑ । ये । दिधि॑षन्ते । आप्य॑म् । मनु॑ऽप्रीतासः । जनि॑म । वि॒वस्व॑तः । य॒यातेः॑ । ये । न॒हु॒ष्य॑स्य । ब॒र्हिषि॑ । दे॒वाः । आस॑ते । ते । अधि॑ । ब्रु॒व॒न्तु॒ । नः॒ ॥ १०.६३.१

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:63» मन्त्र:1 | अष्टक:8» अध्याय:2» वर्ग:3» मन्त्र:1 | मण्डल:10» अनुवाक:5» मन्त्र:1


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ब्रह्ममुनि

इस सूक्त में जीवन्मुक्तों से पढ़कर सर्वकार्यसिद्धि करनी चाहिए, अभ्युदय निःश्रेयस का मार्ग जाना जाता है, जीवनयात्रा निर्दोष चलाई जाती है, इत्यादि विषय हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (ये मनुप्रीतासः) जो मननशील मनुष्य से प्रेम करनेवाले महाविद्वान् (परावतः) दूर से भी आए (आप्य जनिम दिधिषन्त) प्राप्तव्य ब्रह्मचारी नवबालक को उपदेश करते हैं (विवस्वतः-ययातेः-नहुष्यस्य) विशेषरूप से विद्याओं में बसनेवाले यत्नशील तथा संसारबन्धन को दहन करने में कुशल विद्वान् के (बर्हिषि) आसन पद पर (आसते) विराजते हैं (ते नः-अधि ब्रुवन्तु) वे हमें शिष्यरूप स्वीकार कर उपदेश दें ॥१॥
भावार्थभाषाः - विद्याओं में निष्णात यत्नशील वैराग्यवान् महाविद्वान् उच्च पद पर विराजमान दूर से प्राप्त ब्रह्मचारी को प्रीति से शिष्य बनाकर पढ़ावें और उपदेश संसार को देवें ॥१॥