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अध॒ यद्रा॑जाना॒ गवि॑ष्टौ॒ सर॑त्सर॒ण्युः का॒रवे॑ जर॒ण्युः । विप्र॒: प्रेष्ठ॒: स ह्ये॑षां ब॒भूव॒ परा॑ च॒ वक्ष॑दु॒त प॑र्षदेनान् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

adha yad rājānā gaviṣṭau sarat saraṇyuḥ kārave jaraṇyuḥ | vipraḥ preṣṭhaḥ sa hy eṣām babhūva parā ca vakṣad uta parṣad enān ||

पद पाठ

अध॑ । यत् । रा॒जा॒ना॒ । गोऽइ॑ष्टौ । सर॑त् । स॒र॒ण्युः । का॒रवे॑ । ज॒र॒ण्युः । विप्रः॑ । प्रेष्ठः॑ । सः । हि । ए॒षा॒म् । ब॒भूव॒ । परा॑ । च॒ । वक्ष॑त् । उ॒त । प॒र्ष॒त् । ए॒ना॒न् ॥ १०.६१.२३

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:61» मन्त्र:23 | अष्टक:8» अध्याय:1» वर्ग:30» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:5» मन्त्र:23


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अध) अनन्तर (यद्-राजाना) जब ज्ञान से प्रकाशमान हे मुमुक्षु जनो ! (गविष्टौ) मोक्ष की इच्छा में (सरण्युः सरत्) गतिशील गति करता है-अग्रसर होता है (कारवे जरण्युः) सृष्टिकर्ता परमात्मा के लिए स्तुति का इच्छुक होता है (सः-हि-एषां विप्रः प्रेष्ठः बभूव) वह मेधावी मुमुक्षुओं के मध्य परमात्मा का अतिप्रिय होता है (च) तथा (एनान्) अन्य जनों को (परावक्षत्) परमात्मा के प्रति प्रेरित करता है (उत) और (पर्षत्) संसारसागर से पार करता है ॥२३॥
भावार्थभाषाः - मुमुक्षु जनों में जब मोक्ष का इच्छुक हुआ परमात्मा की अत्यन्त स्तुति करता है, वह परमात्मा का अत्यन्त प्रिय बन जाता है और दूसरों को भी परमात्मा की स्तुति के लिए प्रेरित करता है, वह मानो संसारसागर से उन्हें पार कराता है ॥२३॥