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स इद्दा॒नाय॒ दभ्या॑य व॒न्वञ्च्यवा॑न॒: सूदै॑रमिमीत॒ वेदि॑म् । तूर्व॑याणो गू॒र्तव॑चस्तम॒: क्षोदो॒ न रेत॑ इ॒तऊ॑ति सिञ्चत् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa id dānāya dabhyāya vanvañ cyavānaḥ sūdair amimīta vedim | tūrvayāṇo gūrtavacastamaḥ kṣodo na reta itaūti siñcat ||

पद पाठ

सः । इत् । दा॒नाय॑ । दभ्या॑य । व॒न्वन् । च्यवा॑नः । सूदैः॑ । अ॒मि॒मी॒त॒ । वेदि॑म् । तूर्व॑याणः । गू॒र्तव॑चःऽतमः । क्षोदः॑ । न । रेतः॑ । इ॒तःऽऊ॑ति । सि॒ञ्च॒त् ॥ १०.६१.२

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:61» मन्त्र:2 | अष्टक:8» अध्याय:1» वर्ग:26» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:5» मन्त्र:2


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) वह विद्यास्नातक (इत्) अवश्य (च्यवानः) पापों का नष्ट करनेवाला (दानाय) अन्यों को विद्या दान देने के लिए (दभ्याय) दोषनाशन के लिए (वन्वन्) स्वयंवर के लिए या वधू को स्वीकार करने के लिए (सूदैः-वेदिम्-अमिमीत) ज्ञानामृत बरसानेवाले ऋत्विजों के सहयोग से विवाहवेदी को तैयार करता है (तूर्वयाणः) पाप नष्ट करने के लिए गमन जिसका है, वह ऐसा (गूर्तवचस्तमः) अत्यन्त तेजस्वी वक्ता (क्षोदः-न रेतः) जल समान अपने वीर्य को (इतः-ऊति) इस विधान से स्ववंशरक्षण और वर्धन के लिए (सिञ्चत्) पत्नी में सींचता है ॥२॥
भावार्थभाषाः - गृहस्थ में जानेवाला विद्यास्नातक अपने गुणकर्मानुसार वधू का स्मरण करे। ऊँचे ज्ञानामृत तथा वेदामृत बरसानेवाले ऋत्विजों के सहयोग से वेदी तैयार कर विधानपूर्वक विवाह करे, अपने वंश की वृद्धि के लिए। साथ-साथ अपनी विद्या का लाभ देता रहे ऋषि-ऋण चुकाने के लिए ॥२॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) विद्यास्नातकः (इत्) अवश्यं (च्यवानः) च्यावयिता पापानाम् (दानाय) अन्येभ्यो विद्यादानाय (दभ्याय) दोषदम्भनाय (वन्वन्) सवयंवरं वधूं वा सम्भजमानः (सूदैः-वेदिम्-अमिमीत) सुवृक्तिभिर्ज्ञानामृतक्षारयद्भिः-ऋत्विग्भिः सह विवाहवेदिं सज्जीकरोति (तूर्वयाणः) पापनाशनाय यानं गमनं यस्य तथाभूतः सः (गूर्तवचस्तमः) अतिशयेन तेजस्वी वक्ता (क्षोदः-न रेतः) जलसमानं स्वकीयं वीर्यम् (इतः-ऊति) इतो विधानतः स्ववंशरक्षणवर्धनाय (सिञ्चत्) पत्न्यां सिञ्चति ॥२॥