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अ॒यं स्तु॒तो राजा॑ वन्दि वे॒धा अ॒पश्च॒ विप्र॑स्तरति॒ स्वसे॑तुः । स क॒क्षीव॑न्तं रेजय॒त्सो अ॒ग्निं ने॒मिं न च॒क्रमर्व॑तो रघु॒द्रु ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ayaṁ stuto rājā vandi vedhā apaś ca vipras tarati svasetuḥ | sa kakṣīvantaṁ rejayat so agniṁ nemiṁ na cakram arvato raghudru ||

पद पाठ

अ॒यम् । स्तु॒तः । राजा॑ । व॒न्दि॒ । वे॒धाः । अ॒पः । च॒ । विप्रः॑ । त॒र॒ति॒ । स्वऽसे॑तुः । सः । क॒क्षीव॑न्तम् । रे॒ज॒य॒त् । सः । अ॒ग्निम् । ने॒मिम् । न । च॒क्रम् । अर्व॑तः । र॒घु॒ऽद्रु ॥ १०.६१.१६

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:61» मन्त्र:16 | अष्टक:8» अध्याय:1» वर्ग:29» मन्त्र:1 | मण्डल:10» अनुवाक:5» मन्त्र:16


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अयं राजा वेधाः स्तुतः-वन्दि) यह राजमान-सर्वत्र विराजमान विधाता परमात्मा स्तुति करने योग्य है, सब जनों से स्तुत किया जाता है (च) तथा (विप्रः स्वसेतुः-अपः तरति) विविधरूप से व्याप्त अपने ही आश्रय से स्थित-सर्वथा स्वतन्त्र व्याप्य जगत् को भी व्याप्त होता हुआ उस जगत् के पार है (सः कक्षीवन्तं रेजयत्) वह परमात्मा मातृकक्ष-गर्भ में उत्पन्न हुए देहपाशवाले आत्मा को जन्म-जन्मान्तर में चलाता है अथवा बद्धकौपीन ब्रह्मचारी को मोक्ष में प्रेरित करता है (अग्निम्) वह अग्नि सूर्य को चलाता है (नेमिं न चक्रं रघुद्रु-अर्वतः) जैसे परिधिवाले-परिधियुक्त-परिधिसहित तुरन्त गतिशील रथचक्र को घोड़े चलाते हैं ॥१६॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा सारे संसार में व्यापक है और उससे बाहर भी है। वह सूर्य आदि को चलाता है-रथ के चक्र की भाँति। माता के गर्भ में जानेवाले जीवात्मा को भी जन्म-जन्मान्तर में चलाता है तथा पूर्ण ब्रह्मचारी को मोक्ष में प्रेरित करता है ॥१६॥