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उ॒त त्या मे॒ रौद्रा॑वर्चि॒मन्ता॒ नास॑त्याविन्द्र गू॒र्तये॒ यज॑ध्यै । म॒नु॒ष्वद्वृ॒क्तब॑र्हिषे॒ ररा॑णा म॒न्दू हि॒तप्र॑यसा वि॒क्षु यज्यू॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta tyā me raudrāv arcimantā nāsatyāv indra gūrtaye yajadhyai | manuṣvad vṛktabarhiṣe rarāṇā mandū hitaprayasā vikṣu yajyū ||

पद पाठ

उ॒त । त्या । मे॒ । रौद्रौ॑ । अ॒र्चि॒ऽमन्ता॑ । नास॑त्यौ । इ॒न्द्र॒ । गृ॒तये॑ । यज॑ध्यै । म॒नु॒ष्वत् । वृ॒क्तऽब॑र्हिषे । ररा॑णा । म॒न्दू इति॑ । हि॒तऽप्र॑यसा । वि॒क्षु । यज्यू॒ इति॑ ॥ १०.६१.१५

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:61» मन्त्र:15 | अष्टक:8» अध्याय:1» वर्ग:28» मन्त्र:5 | मण्डल:10» अनुवाक:5» मन्त्र:15


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (उत) और (त्या रौद्रौ-अर्चिमन्ता नासत्यौ) वे दोनों तुझ परमेश्वरप्रेरित ज्ञानज्योतिवाले सत्यव्यवहारकर्त्ता अध्यापक और उपदेशक (मे गूर्तये यजध्यै) मेरे उद्यम कार्य के लिए-अध्यात्मयज्ञ करने के लिए (मनुष्वत्) मननवाले के लिए (वृक्तबर्हिषे) गृहस्थोदक सम्बन्ध को त्यागे हुए के लिए-वैराग्यवान् के लिए (रराणा) विद्या में रमण करनेवालो (मन्दू) हर्षित करनेवालो-सुख देनेवालो (विक्षु) मनुष्यप्रजाओं में (हित प्रयसा यज्यू) हित के लिए प्रयतमान ज्ञानयज्ञ करनेवाले तुम होओ ॥१५॥
भावार्थभाषाः - अध्यापक और उपदेशक जैसे गृहस्थ आश्रम वालों को सांसारिक व्यवहारों तथा विद्याओं का अध्यापन उपदेश करते हैं, ऐसे ही गृहस्थ से निवृत्त वैराग्यवान् होते हुए वानप्रस्थ भी अध्यात्मयज्ञ और अध्यात्मविद्या का उपदेश करें ॥१५॥