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अ॒गस्त्य॑स्य॒ नद्भ्य॒: सप्ती॑ युनक्षि॒ रोहि॑ता । प॒णीन्न्य॑क्रमीर॒भि विश्वा॑न्राजन्नरा॒धस॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agastyasya nadbhyaḥ saptī yunakṣi rohitā | paṇīn ny akramīr abhi viśvān rājann arādhasaḥ ||

पद पाठ

अ॒गस्त्य॑स्य । नत्ऽभ्यः॑ । सप्ती॒ इति॑ । यु॒न॒क्षि॒ । रोहि॑ता । प॒णीन् । नि । अ॒क्र॒मीः॒ । अ॒भि । विश्वा॑न् । रा॒ज॒न् । अ॒रा॒धसः॑ ॥ १०.६०.६

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:60» मन्त्र:6 | अष्टक:8» अध्याय:1» वर्ग:24» मन्त्र:6 | मण्डल:10» अनुवाक:4» मन्त्र:6


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (राजन्) हे राजन् ! (अगस्त्यस्य नद्भ्यः) पाप को त्याग दिया है जिसने, ऐसे निष्पाप के प्रशंसकों के लिए (रोहिता सप्ती युनक्षि) शुभ्र रोहण करनेवाले सभेश और सेनेश को युक्त कर (पणीन् न्यक्रमीः) व्यापारियों को स्वाधीन कर और उनको अपने व्यापार में प्रेरित कर (विश्वान्-अराधसः-अभि) सब उद्दण्डों को दबा-तिरस्कृत कर ॥६॥
भावार्थभाषाः - राजा को चाहिए कि निष्पाप-पाकर्मसम्पर्क से रहित, परमात्मा की स्तुति प्रार्थना उपासना करनेवाले ऋषि-मुनियों के लिए विशेष न्यायव्यवस्था और रक्षाप्रबन्धार्थ सभेश और सेनेश को नियुक्त करे तथा व्यापारियों के लिए व्यापारार्थ प्रेरणा दे और राष्ट्र में जो उद्दण्ड हों, उन पर पूरा नियन्त्रण रखे ॥६॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (राजन्) हे राजन् ! (अगस्त्यस्य नद्भ्यः) त्यक्तपापस्य प्रशंसकेभ्यः (रोहिता सप्ती युनक्षि) शुभ्रौ रोहणकर्त्तारौ प्रगतिशीलौ सभासेनेशौ योजय (पणीन् न्यक्रमीः) व्यापारिणः स्वाधीनीकुरु (विश्वान्-अराधसः-अभि) सर्वान् उद्दण्डान्-अभिभव ॥६॥