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शं रोद॑सी सु॒बन्ध॑वे य॒ह्वी ऋ॒तस्य॑ मा॒तरा॑ । भर॑ता॒मप॒ यद्रपो॒ द्यौः पृ॑थिवि क्ष॒मा रपो॒ मो षु ते॒ किं च॒नाम॑मत् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śaṁ rodasī subandhave yahvī ṛtasya mātarā | bharatām apa yad rapo dyauḥ pṛthivi kṣamā rapo mo ṣu te kiṁ canāmamat ||

पद पाठ

शम् । रोद॑सी॒ इति॑ । सु॒ऽबन्ध॑वे । य॒ह्वी इति॑ । ऋ॒तस्य॑ । मा॒तरा॑ । भर॑ताम् । अप॑ । यत् । रपः॑ । द्यौः । पृ॒थि॒वि॒ । क्ष॒मा । रपः॑ । मो इति॑ । सु । ते॒ । किम् । च॒न । आ॒म॒म॒त् ॥ १०.५९.८

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:59» मन्त्र:8 | अष्टक:8» अध्याय:1» वर्ग:23» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:4» मन्त्र:8


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सुबन्धवे) अच्छी सन्तान के लिए (यह्वी रोदसी शम्) महत्त्वगुणवाले माता पिता कल्याणकारी होवें (ऋतस्य मातरा) जो उदकसम्बन्ध अर्थात् रजोवीर्य को अपने शरीर में संयम से निर्माण करते हैं, (यत्-रपः-अप भरताम्) जो अपने पाप और अज्ञान को दूर करते हैं-करते हों (द्यौः पृथिवि) हम पिता और माता (क्षमा) क्षमा से-सहनशक्ति से-सरलस्वभाववत्ता से (रपः-किञ्चन ते) पालन और शिक्षण में यदि कोई दोष तेरे लिये हो, तो (मा-उ-सु-आममत्) वह तुझ पुत्र को हिंसित न करे, ऐसा यत्न करेंगे ॥८॥
भावार्थभाषाः - उत्तम सन्तान की उत्पत्ति के लिए माता पिता अपने शरीर में संयम द्वारा रजवीर्य को सुरक्षित रखें, पाप और अज्ञान से दूर रहें, ज्ञान और सद्गुणों को धारण करें। फिर भी यदि कोई दोष अपने अन्दर हो, तो ऐसा व्यवहार करें, जिससे सन्तान पर उसका प्रभाव न पड़े ॥८॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सुबन्धवे) सुसन्तानाय (यह्वी रोदसी शम्) महत्त्वगुणवत्यौ द्यावापृथिव्यौ मातापितृभूते कल्याणकारिके भवताम् (ऋतस्य मातरा) यत उदकसम्बन्धस्य निर्मात्र्यौ स्तः (यत्-रपः-अप भरताम्) पापमज्ञानं वा दूरी कुरुताम् (द्यौः पृथिवि) आवां मातापितरौ (क्षमा) क्षमया सहनशक्त्या सरलस्वभाववत्तया (रपः-मा-उ सु किञ्चन ते-आमयत्) पालने शिक्षणे दोषो तुभ्यं भवेत् स किञ्चन त्वां पुत्रं न हिनस्तु, इति इति यत्नं विधास्यावः ॥८॥