यत्ते॒ सूर्यं॒ यदु॒षसं॒ मनो॑ ज॒गाम॑ दूर॒कम् । तत्त॒ आ व॑र्तयामसी॒ह क्षया॑य जी॒वसे॑ ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
yat te sūryaṁ yad uṣasam mano jagāma dūrakam | tat ta ā vartayāmasīha kṣayāya jīvase ||
पद पाठ
यत् । ते॒ । सूर्य॑म् । यत् । उ॒षस॑म् । मनः॑ । ज॒गाम॑ । दूर॒कम् । तत् । ते॒ । आ । व॒र्त॒या॒म॒सि॒ । इ॒ह । क्षया॑य । जी॒वसे॑ ॥ १०.५८.८
ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:58» मन्त्र:8
| अष्टक:8» अध्याय:1» वर्ग:21» मन्त्र:2
| मण्डल:10» अनुवाक:4» मन्त्र:8
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ब्रह्ममुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (ते) हे मानसरोगग्रस्त मनुष्य ! तेरा (यत्-मनः) जो मन (सूर्यं यत्-उषसं दूरकं जगाम) सूर्य के प्रति और जो उषा के प्रति दूर चला गया है (ते तत्……) पूर्ववत् ॥८॥
भावार्थभाषाः - मानसिक रोगी को जब भ्रान्ति से जाग्रत् में अथवा अर्द्धनिद्रा में सूर्य या उषा उसकी पीतिमा मन में बसी जा रही हो, आँखें भी खोलने को तैयार न हो और कहे कि सूर्य या प्रकाश बहुत तीव्र है, तो ऐसी अवस्था में मन को आश्वासन दें ॥८॥
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ब्रह्ममुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (ते) हे मानसरोगग्रस्त जन ! तव (यत्-मनः) यन्मनः (सूर्यं यत्-उषसं दूरकं जगाम) सूर्यं प्रति यच्च-उषसं प्रति दूरं गतम् (ते तत्……) पूर्ववत् ॥८॥