यत्ते॑ अ॒पो यदोष॑धी॒र्मनो॑ ज॒गाम॑ दूर॒कम् । तत्त॒ आ व॑र्तयामसी॒ह क्षया॑य जी॒वसे॑ ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
yat te apo yad oṣadhīr mano jagāma dūrakam | tat ta ā vartayāmasīha kṣayāya jīvase ||
पद पाठ
यत् । ते॒ । अ॒पः । यत् । ओष॑धीः । मनः॑ । ज॒गाम॑ । दूर॒कम् । तत् । ते॒ । आ । व॒र्त॒या॒म॒सि॒ । इ॒ह । क्षया॑य । जी॒वसे॑ ॥ १०.५८.७
ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:58» मन्त्र:7
| अष्टक:8» अध्याय:1» वर्ग:21» मन्त्र:1
| मण्डल:10» अनुवाक:4» मन्त्र:7
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ब्रह्ममुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (ते) हे मानसरोगग्रस्त जन ! तेरा (यत्-मनः) जो मन (यत्-अपः-ओषधीः-दूरकं जगाम) जो जलों तथा ओषधियों के प्रति दूर चला गया है (ते तत्……) पूर्ववत् ॥७॥
भावार्थभाषाः - मानसरोगग्रस्त रोगी का मन भ्रान्त हुआ जलों में पुनः-पुनः स्नान, पान, क्रीडन आदि में रुचि रख रहा हो तथा ओषधि-वनस्पतियों में उनके पुनः-पुनः स्मरण, आस्वादन रुचि या अरुचि में प्रवाहित हो तो तत्तदुपयुक्त आश्वासन देकर रोगी के मन को शान्ति देनी चाहिए ॥७॥
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ब्रह्ममुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (ते) हे मानसरोगग्रस्त जन ! तव (यत्-मनः) यदन्तःकरणम् (यत्-अपः-ओषधीः-दूरकं जगाम) यज्जलानि प्रति-ओषधीः प्रति दूरंगतम् (ते तत्……) पूर्ववत् ॥७॥