वांछित मन्त्र चुनें

यत्ते॒ मरी॑चीः प्र॒वतो॒ मनो॑ ज॒गाम॑ दूर॒कम् । तत्त॒ आ व॑र्तयामसी॒ह क्षया॑य जी॒वसे॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yat te marīcīḥ pravato mano jagāma dūrakam | tat ta ā vartayāmasīha kṣayāya jīvase ||

पद पाठ

यत् । ते॒ । मरी॑चीः । प्र॒ऽवतः॑ । मनः॑ । ज॒गाम॑ । दूर॒कम् । तत् । ते॒ । आ । व॒र्त॒या॒म॒सि॒ । इ॒ह । क्षया॑य । जी॒वसे॑ ॥ १०.५८.६

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:58» मन्त्र:6 | अष्टक:8» अध्याय:1» वर्ग:20» मन्त्र:6 | मण्डल:10» अनुवाक:4» मन्त्र:6


बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ते) हे मानसरोगग्रस्त जन ! तेरा (यत्-मनः) जो मन (प्रवतः-मरीचीः-दूरकं जगाम) प्रगति करती हुई आशा रश्मियों के प्रति दूर तक चला गया है (ते तत्……) पूर्ववत् ॥६॥
भावार्थभाषाः - मानसिक रोगी का मन आशाओं की तरङ्गों में बहता चला जाये, तो उसको आशारोधक आश्वासनों एवं सान्त्वनापूर्ण आश्वासनों से स्वस्थ करना चाहिए, क्योंकि आशाओं का कोई अन्त नहीं है ॥६॥
बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ते) हे मानसरोगग्रस्त जन ! तव (यत्-मनः) यन्मनः (प्रवतः-मरीचीः-दूरकं जगाम) प्रगच्छत आशारश्मीन् दूरं गतम् (ते तत्……) पूर्ववत् ॥६॥