पदार्थान्वयभाषाः - (जातवेदः-अग्ने) हे उत्पन्न शरीर में जानने योग्य अङ्गों के नायक आत्मन् ! (यत्-अजरम्-आयुः) जो जरारहित आयु है (ते) तेरे लिए (कुर्मः) करते हैं (युक्तः-यथा न रिष्याः) उससे युक्त हुआ जैसे न मर सके (अथ सुमनस्यमानः) अनन्तर सुप्रसन्न हुआ (सुजात) हे शोभन जन्मवाले या सुप्रसिद्ध ! (देवेभ्यः-हविषः-भागं वहासि) इन्द्रियों के लिए ग्राह्य विषय के भजनीयलाभ को प्राप्त हो। तथा (जातवेदः-अग्ने) हे उत्पन्न होते ही जानने योग्य यन्त्र के अग्रणायक विद्युत् अग्ने ! (यत्-अजरम्-आयुः) जो अजीर्ण-न क्षीण होनेवाला अयन-गतिक्रम है (ते कुर्मः) हम वैज्ञानिक तेरे लिए करते हैं (युक्तः-यथा न रिष्याः) उससे युक्त हुआ जैसे विनष्ट न हो सके (अथ) अनन्तर (सुमनस्यमानः) सुविकसित हुआ-हुआ (देवेभ्यः-हविषः-भागं वहासि) वैज्ञानिकों के लिए देने योग्य वज्र या द्रव पदार्थ का भजनीय लाभ-बल को प्राप्त कर ॥७॥
भावार्थभाषाः - शरीर में आकर आत्मा इन्द्रियों के भोगों के साथ संयम द्वारा अपनी ऐसी स्थिति बनाये, जिससे कि अजर आयु अर्थात् मोक्ष का आयु प्राप्त कर सके। एवं यन्त्र में विद्युत् को ऐसे युक्त करना चाहिए जिससे कि स्थिररूप में निरन्तर गतिशील बनी रहे, एतदर्थ कोई ठोस वज्र या द्रव पदार्थ का उसमें प्रयोग करना चाहिए ॥७॥