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कृ॒तं न श्व॒घ्नी वि चि॑नोति॒ देव॑ने सं॒वर्गं॒ यन्म॒घवा॒ सूर्यं॒ जय॑त् । न तत्ते॑ अ॒न्यो अनु॑ वी॒र्यं॑ शक॒न्न पु॑रा॒णो म॑घव॒न्नोत नूत॑नः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kṛtaṁ na śvaghnī vi cinoti devane saṁvargaṁ yan maghavā sūryaṁ jayat | na tat te anyo anu vīryaṁ śakan na purāṇo maghavan nota nūtanaḥ ||

पद पाठ

कृ॒तम् । न । श्व॒ऽघ्नी । वि । चि॒नो॒ति॒ । देव॑ने । स॒म्ऽवर्ग॑म् । यत् । म॒घऽवा॑ । सूर्य॑म् । जय॑त् । न । तत् । ते॒ । अ॒न्यः । अनु॑ । वी॒र्य॑म् । श॒क॒त् । न । पु॒रा॒णः । म॒घ॒ऽव॒न् । न । उ॒त । नूत॑नः ॥ १०.४३.५

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:43» मन्त्र:5 | अष्टक:7» अध्याय:8» वर्ग:24» मन्त्र:5 | मण्डल:10» अनुवाक:4» मन्त्र:5


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (श्वघ्नी कृतं न वि चिनोति) भेड़िया अपने प्रहार किये हुए-मारे हुए प्राणी को जैसे स्वाधीन करता है, (यत् मघवा देवने संवर्गं सूर्यं जयत्) वैसे ही ऐश्वर्यवान् परमात्मा प्रकाश करने के लिए प्रकाश को छोड़नेवाले-बिखेरनेवाले सूर्य को स्वाधीन करता है (तत्-ते-अन्यः अनुवीर्यं शकत्) तदनन्तर ही वह तुझसे भिन्न सूर्य तेरे अनुकूल वीर्य तेज करने में समर्थ होता है (मघवन्) हे परमात्मन् ! (न पुराणः-न-उत-नूतनः) वह सूर्य न तेरे जैसा पूर्ववर्ती है और न अन्य वस्तुओं जैसा नवीन है-पश्चाद्वर्ती है ॥५॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा के अधीन बड़े-बड़े शक्तिशाली सूर्य जैसे पिण्ड हैं। जो सूर्य ब्रह्माण्ड में प्रकाश फेंकता है, वह परमात्मा के अधीन होकर ही फेंकता है। सूर्य शाश्वतिक नहीं है, न अन्य जड़ वस्तुओं जैसा अर्वाचीन है, क्योंकि उसके प्रकाश से ही वनस्पति आदि जीवन धारण करती हैं ॥५॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (श्वघ्नी कृतं न विचिनोति) श्वहन्ता वृकः कृतं प्रहृतं यथा स्वाधीनं करोति (यत्-मघवा देवने संवर्गं सूर्यं जयत्) यत्-यथा तथा ऐश्वर्यवान् परमात्मा प्रकाशस्य वर्जयितारं प्रसारयितारं प्रकाशकरणे सूर्यमभिभवति-स्वाधीनी करोति “जि-अभिभवे” [भ्वादि०] (तत्-ते अन्यः-अनुवीर्यं शकत्) यथा तव वीर्यमनुकर्त्तुं शक्नोति (मघवन्) हे परमात्मन् ! (न पुराणः-न-उत नूतनः) स एष सूर्यो न पूर्वकालीनो नावरकालीनः ॥५॥