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यु॒वां मृ॒गेव॑ वार॒णा मृ॑ग॒ण्यवो॑ दो॒षा वस्तो॑र्ह॒विषा॒ नि ह्व॑यामहे । यु॒वं होत्रा॑मृतु॒था जुह्व॑ते न॒रेषं॒ जना॑य वहथः शुभस्पती ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yuvām mṛgeva vāraṇā mṛgaṇyavo doṣā vastor haviṣā ni hvayāmahe | yuvaṁ hotrām ṛtuthā juhvate nareṣaṁ janāya vahathaḥ śubhas patī ||

पद पाठ

यु॒वाम् । मृ॒गाऽइ॑व । वा॒र॒णा । मृ॒ग॒ण्यवः॑ । दो॒षा । वस्तोः॑ । ह॒विषा॑ । नि । ह्व॒या॒म॒हे॒ । यु॒वम् । होत्रा॑म् । ऋ॒तु॒ऽथा । जुह्व॑ते । न॒रा॒ । इष॑म् । जना॑य । व॒ह॒थः॒ । शु॒भः॒ । प॒ती॒ इति॑ ॥ १०.४०.४

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:40» मन्त्र:4 | अष्टक:7» अध्याय:8» वर्ग:18» मन्त्र:4 | मण्डल:10» अनुवाक:3» मन्त्र:4


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (युवाम्) हे स्थविर-वृद्ध स्त्री-पुरुषों ! तुम (मृगा-इव वारणा) गृहस्थ में जानेवाले उनके दुखों के निवारक (मृगण्यवः) तुम दोनों की खोज करनेवाले हम नवगृहस्थ (दोषा वस्तोः) दिन-रात (हविषा नि ह्वयामहे) उत्तम ग्रहण करने योग्य वस्तु के द्वारा तुम्हारा सत्कार करते हैं (युवां नरा) तुम नेता (शुभस्पती) कल्याणस्वामी-कल्याणप्रद (जनाय) जनमात्र के लिए (इषं वहथः) इष्ट सुख अन्न आदि को प्राप्त कराते हो (होत्राम्-ऋतुथा जुह्वते) सारे गृहस्थ तुम दोनों के लिए समय-समय पर सत्कार, उपहार देते हैं ॥४॥
भावार्थभाषाः - वृद्ध गृहस्थ जन नवगृहस्थों के घरों में पहुँचें। उन्हें गृहस्थ-संचालन के अपने अनुभवों से अवगत कराएँ। नवगृहस्थ भी वृद्ध स्त्री-पुरुषों को समय–समय पर आमन्त्रित करें, उनका उपहार एवं सत्कार से स्वागत करें ॥४॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (युवाम्) हे अश्विनौ स्थविरौ स्त्रीपुरुषौ ! (मृगा-इव वारणा) गृहस्थेषु गन्तारौ दुःखनिवारकौ-एव, “इवोऽपि दृश्यते पादपूरणः” [निरु० १।११] (मृगण्यवः) युवामन्वेषका वयं नवगृहस्थाः ‘मृग अन्वेषणे’ [चुरादिः] (दोषा वस्तोः) नक्तं दिवा (हविषा निह्वयामहे) उत्तमग्रहणयोग्येन वस्तुना निमन्त्रयामहे-सत्कुर्मः (युवम्) युवाम् (नरा) नेतारौ (शुभस्पती) कल्याण-स्वामिनौ-कल्याणप्रदौ (जनाय) जनमात्राय (इषं वहथः) इष्टं सुखमन्नादिकं वा प्रापयथः (होत्राम्-ऋतुथा जुह्वते) सर्वे गृहस्था युवाभ्यां समये समये प्रशंसां ददति प्रशंसां कुर्वन्ति ॥४॥