पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना) हे अश्ववाले-राष्ट्रवाले-राष्ट्र के प्रधान पुरुषों ! (वाम्) तुम दोनों के लिए (एतं स्तोमम्-अकर्म-अतक्षाम) इस प्रशंसनीय आदेश का हम आचरण करते हैं तथा उसके अनुसार अपने को साधते हैं (भृगवः-न रथम्) जैसे भर्जनशील-ज्ञान से दीप्तिमान् तेजस्वी जन अपने रमणस्थान यान को साधते हैं (नि-अमृक्षाम मर्ये न योषणाम्) वर के निमित्त-वर के लिए जैसे वधू को वस्त्र भूषण आदि से संस्कृत करते हैं, ऐसे ही संस्कृत अर्थात् परिशुद्ध जीवन को हम प्रसिद्ध करते हैं (सूनुं तनयं नित्यं न दधानाः) जैसे पुत्र-पौत्र को नित्य धारण करते हुए हम यत्न करते हैं, एवं जीवन को साधते हैं ॥१४॥
भावार्थभाषाः - अश्ववाले-राष्ट्रवाले राष्ट्रशासक प्रधान पुरुष राजा व मन्त्री के लिए प्रशंसनीय उपहार देना और उनके आदेश का पालन करना चाहिए। तेजस्वी विद्वान् विमान आदि यान बनावें और वस्त्र-भूषण आदि से सुभूषित करके कन्याओं के विवाह की व्यवस्था करें। उत्तम पुत्र-पौत्र गृहस्थ में प्राप्त करें ॥१४॥