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सा मा॑ स॒त्योक्ति॒: परि॑ पातु वि॒श्वतो॒ द्यावा॑ च॒ यत्र॑ त॒तन॒न्नहा॑नि च । विश्व॑म॒न्यन्नि वि॑शते॒ यदेज॑ति वि॒श्वाहापो॑ वि॒श्वाहोदे॑ति॒ सूर्य॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sā mā satyoktiḥ pari pātu viśvato dyāvā ca yatra tatanann ahāni ca | viśvam anyan ni viśate yad ejati viśvāhāpo viśvāhod eti sūryaḥ ||

पद पाठ

सा । मा॒ । स॒त्यऽउ॑क्तिः । परि॑ । पा॒तु॒ । वि॒श्वतः॑ । द्यावा॑ । च॒ । यत्र॑ । त॒तन॑न् । अहा॑नि । च॒ । विश्व॑म् । अ॒न्यत् । नि । वि॒श॒ते॒ । यत् । एज॑ति । वि॒श्वाहा॑ । आपः॑ । वि॒श्वाहा॑ । उत् । ए॒ति॒ । सूर्यः॑ ॥ १०.३७.२

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:37» मन्त्र:2 | अष्टक:7» अध्याय:8» वर्ग:12» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:3» मन्त्र:2


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सा सत्योक्तिः) वह सत्यवाक्-वेदवाणी-ईश्वरीय वाणी (मा विश्वतः परि पातु) मुझे सब ओर से सुरक्षित रखे (यत्र) जिसके आश्रय में (द्यावा च) दोनों द्यावापृथिवी-द्युलोक व पृथ्वीलोक (अहानि च) दिन और रात्रियाँ (ततनन्) प्रसार पाती हैं (विश्वम्-अन्यत्-निविशते) सब अन्य वस्तु निविष्ट-रखी हुई हैं (यत्-एजति) जो चेतन वस्तु चेष्ठा कर रही है (आपः-विश्वाहा) जलधाराएँ बह रही हैं (सूर्यः-विश्वाहा-उदेति) सूर्य नित्य उदय होता है ॥२॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा की सत्य वाणी-श्रुति वेदवाणी मनुष्यों की सब प्रकार से रक्षा करती है। उसी सत्य वाणी के अनुसार आकाश से लेकर पृथ्वीपर्यन्त लोक-लोकान्तर और अहर्गण तथा  रात्रिगण प्रसारित हो रहे हैं-क्रमशः चालू हैं। सब जड़ और चेतन पदार्थ अपने-अपने स्वरूप में स्थित चेष्टा करते हैं तथा तदनुसार जलधाराएँ बहती हैं, सूर्य उदय होता है, ऐसे उस परमात्मा का ध्यान और उसकी वेदवाणी का ज्ञान करना चाहिये ॥२॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सा सत्योक्तिः मा विश्वतः परिपातु) सा सत्यवाक्-वेदवाक् श्रुतिरीश्वरवाणी मां सर्वतः खलु परिरक्षति सम्यक् सेवनेन ‘अत्र लडर्थे लोट्’ (यत्र) यदाश्रये (द्यावा च) द्यावौ “द्यावा…द्यावौ” [निरु० २।२१] द्यावापृथिव्यौ-द्युलोकपृथिवीलोकौ च (अहानि च) दिनानि च चकाराद् रात्रयश्च (ततनन्) प्रसरन्ति (विश्वम्-अन्यत्-निविशते) सर्वमन्यत्-यत् खलु स्थिरत्वं प्राप्तं जडं वस्तु (यत्-एजति) यच्च चेष्टते-चेतनं वस्तु (आपः-विश्वाहा) आपः सर्वदा प्रवहन्ति (सूर्यः-विश्वाहा-उदेति) सूर्यश्च नित्यमुदेति ॥२॥