पदार्थान्वयभाषाः - (मही) महत्त्वपूर्ण (द्यावापृथिवी मातरा) द्युलोक और पृथ्वीलोक दोनों अथवा ज्ञानप्रकाशिका विद्वत्सभा और अन्नादिव्यवस्था करनेवाली समिति प्रजानिर्माण करनेवाली (अनागसः-नः) हम दोषरहितों की (अद्य सुविताय त्रायेताम्) इस मानवजीवन में सुख के लिए रक्षा करें (उच्छन्ती-उषाः) प्रकट होती हुई ज्योतिर्मय प्रभातवेला तथा प्राप्त होती हुई नई वधू (अघं बाधताम्) अघ-अन्धकार अज्ञान को नष्ट करते हैं (समिधानम्-अग्निं स्वस्ति-ईमहे) अग्निहोत्र में सम्यक् दीप्ति हुई अग्नि को तथा अग्निहोत्र करते हुए यजमान को सुखी रूप में चाहते हैं ॥३॥
भावार्थभाषाः - द्युलोक पृथिवीलोक परमात्मा ने निर्दोष मनुष्यों के लिये कल्याणकारी बनाये। प्रातः वेला भी अज्ञान आदि दोषों को दूर करनेवाली बनाई है। अग्नि भी मनुष्य का कल्याण साधनेवाली रची है तथा ज्ञानप्रकाश करनेवाली विद्वत्सभा और अन्नादि की व्यवस्था करनेवाली समिति समाज या राष्ट्र में निर्दोष मनुष्यों की रक्षा करती है। उत्तम सुख प्राप्त कराती है। घर में नई वधू भी दुःख को हटाती है। प्रतिदिन अग्निहोत्र करनेवाले का कल्याण होता है ॥३॥