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अ॒क्षैर्मा दी॑व्यः कृ॒षिमित्कृ॑षस्व वि॒त्ते र॑मस्व ब॒हु मन्य॑मानः । तत्र॒ गाव॑: कितव॒ तत्र॑ जा॒या तन्मे॒ वि च॑ष्टे सवि॒तायम॒र्यः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

akṣair mā dīvyaḥ kṛṣim it kṛṣasva vitte ramasva bahu manyamānaḥ | tatra gāvaḥ kitava tatra jāyā tan me vi caṣṭe savitāyam aryaḥ ||

पद पाठ

अ॒क्षैः । मा । दी॒व्य॒ह् । कृ॒षिम् । इत् । कृ॒ष॒स्व॒ । वि॒त्ते । र॒म॒स्व॒ । ब॒हु । मन्य॑मानः । तत्त्र॑ । गावः॑ । कि॒त॒व॒ । तत्र॑ । जा॒या । तत् । मे॒ । वि । च॒ष्टे॒ । स॒वि॒ता । अ॒यम् । अ॒र्यः ॥ १०.३४.१३

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:34» मन्त्र:13 | अष्टक:7» अध्याय:8» वर्ग:5» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:3» मन्त्र:13


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (कितव) हे द्यूतव्यसनी ! (अक्षैः-मा दीव्यः) जुए के पाशों से मत खेल (कृषिम्-इत्-कृषस्व) कृषि को जोत-खेती कर-अन्न उपजा (वित्ते रमस्व) खेती से प्राप्त अन्न-धन-भोग से आनन्द ले (बहु मन्यमानः) अपने को धन्य मानता हुआ प्रसन्न रह, क्योंकि (तत्र गावः) उस कार्य में गौएँ सुरक्षित हैं-और रहेंगी (तत्र जाया) उसमें पत्नी सुरक्षित प्रसन्न व अनुकूल रहेगी (अयम्-अर्यः सविता तत्-मे वि चष्टे) यह उत्पादक जगदीश परमात्मा मुझ उपासक के लिये कहता है कि लोगों को ऐसा उपदेश दो ॥१३॥
भावार्थभाषाः - जुए जैसे विषम व्यवहार एवं पाप की कमाई से बचकर स्वश्रम से उपार्जित कृषि से प्राप्त अन्न और भोग श्रेष्ठ हैं। इससे पारिवारिक व्यवस्था और पशुओं का लाभ भी मिलता है, परमात्मा भी अनुकूल सुखदायक बनता है ॥१३॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (कितव) हे द्यूतव्यसनिन् ! (अक्षैः-मा दीव्यः) अक्षैर्द्यूतपाशैर्न क्रीड (कृषिम्-इत्-कृषस्व) कृषिकर्षयान्नमुत्पादय (वित्ते रमस्व) कृषिधने कृषिनिष्पन्न-भोगे त्वमानन्दं कुरु (बहु मन्यमानः) स्वात्मानं धन्यं मन्यमानः यतः (तत्र गावः) तत्कार्ये गावः सुरक्षिताः (तत्र जाया) तत्र खलु पत्नी सुरक्षिता प्रसन्नाऽनुकूला च (अयम्-अर्यः सविता तत्-मे वि चष्टे) एष उत्पादको जगदीशः परमात्मा मह्यमुपासकाय तद् विशिष्टतया कथयति यल्लोकानुपदिश ॥१३॥