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स्ते॒गो न क्षामत्ये॑ति पृ॒थ्वीं मिहं॒ न वातो॒ वि ह॑ वाति॒ भूम॑ । मि॒त्रो यत्र॒ वरु॑णो अ॒ज्यमा॑नो॒ऽग्निर्वने॒ न व्यसृ॑ष्ट॒ शोक॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

stego na kṣām aty eti pṛthvīm mihaṁ na vāto vi ha vāti bhūma | mitro yatra varuṇo ajyamāno gnir vane na vy asṛṣṭa śokam ||

पद पाठ

स्ते॒गः । न । क्षम् । अति॑ । ए॒ति॒ । पृ॒थ्वीम् । मिह॑म् । न । वातः॑ । वि । ह॒ । वाति॑ । भूम॑ । मि॒त्रः । यत्र॑ । वरु॑णः । अ॒ज्यमा॑नः । अ॒ग्निः । वने॑ । न । वि । असृ॑ष्ट । शोक॑म् ॥ १०.३१.९

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:31» मन्त्र:9 | अष्टक:7» अध्याय:7» वर्ग:28» मन्त्र:4 | मण्डल:10» अनुवाक:3» मन्त्र:9


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (स्तेगः-न पृथ्वीम्-अति एति) किरणसमूहवान् सूर्य के समान परमात्मा फैली हुई सृष्टि के पार तक चला जाता है। सारी सृष्टि इसके अन्दर रहती है। (वातः-न मिहं ह भूम वि वाति) वेगवान् वायु जैसे बरसनेवाले मेघ को बहुत स्थानों पर विविधरूप से फेंक देता है, वर्षा देता है, वैसे ही परमात्मा विविध सृष्टि को फैला देता है (यत्र) जिसके आश्रय पर (मित्रः) विद्युत् का प्रक्षेपणवेग तथा (वरुणः) विद्युत् का आकर्षणवेग और (अज्यमानः-अग्निः) व्यक्त हुआ-प्रज्वलित होता हुआ अग्नि (वने न शोकं व्यसृष्ट) समूह में जैसे अपने ज्वलन-तेज को छोड़ कर प्रकाशित करता है, इसी भाँति परमात्मा अपने तेज से जगत् को प्रकाशित करता है ॥९॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा समस्त फैली हुई सृष्टि के अन्दर और बाहर भी है। सारे पृथ्वी आदि पिण्डों को दूर-दूर तक बिखेरे हुए है। सब उस परमात्मा के आश्रय पर विद्युत्, अग्नि आदि पदार्थ हैं। अपने प्रकाश से वह संसार को प्रकाशित कर रहा है ॥९॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (स्तेगः न पृथ्वीम्-अत्येति) रश्मिसंघाती सूर्यः-इव “स्त्यै ष्ट्यै संघाते” [भ्वादि०] परमात्मा प्रथितां सृष्टिमतिक्राम्यति तदन्तरे सर्वा सृष्टिः (वातः न मिहं ह भूम वि वाति) तीव्रवायुर्यथा मेहसमर्थं मेघं खलु बहुत्र विविधं प्रेरयति तद्वत् परमात्मा सृष्टिं विविधं प्रक्षिपति (यत्र) यस्मिन्-यस्याश्रये (मित्रः) विद्युतः प्रक्षेपणवेगः (वरुणः) विद्युत आकर्षणवेगश्च वर्त्तेते तथा (अज्यमानः-अग्निः) व्यज्यमानो व्यक्तीभवन्-अग्निः (वने-न शोकं व्यसृष्ट) वृक्षसमूहे स्वज्वलनं विसृज्य प्रकाशयति तद्वत् परमात्मा सर्वं जगत् स्वप्रकाशेन प्रकाशयति ॥९॥