पदार्थान्वयभाषाः - (अस्य ददृशानपवेः) इस दृष्ट वज्र वाले-तापकास्त्रवाले (जेहमानस्य) सब संसार में गति शक्तिवाले सूर्य की (शुष्मासः) बलवाली रश्मियाँ-किरणें (नियुद्भिः) लोकों में अन्दर घुसनेवाले धर्मों द्वारा या नियन्त्रण गुणों द्वारा अथवा वातसूत्रों द्वारा (स्वनयन्) लोकों-पिण्डों या संसार को अलंकृत कर देती हैं-चमका देती हैं (यः-देवतमः-अरतिः-विभ्वा) जो देवस्थानी देवों में मुख्य, सब में प्रवेश करनेवाला एक ही स्थान पर रमणकर्ता-प्रभावकारी नहीं, अपितु सर्वत्र ही प्रभावकारी है, वैभवपात्र है, ऐसा सूर्य (प्रत्नेभिः) सनातन (रुशद्भिः) शुभ्र (रेभद्भिः) उसे घोषित करती हुई सी रश्मियों से (विभाति) विशेष दीप्त हो रहा है ॥६॥
भावार्थभाषाः - तापक वज्रवाले सूर्य की रश्मियाँ नियन्त्रण गुणों य सर्वत्र घुसनेवाले वातसूत्रों द्वारा सब लोकों को स्वायत्त करती हैं, आकर्षित करती हैं, आकाश में चमकनेवालों पिण्डों ग्रहों को इसकी रश्मियाँ घोषित करती हैं, जिनसे यह प्रकाशित हो रहा है। इसी प्रकार विद्यासूर्य विद्वान् ब्रह्मास्त्रवाला होता है, उनकी ज्ञानरश्मियाँ लोगों को आकर्षित करनेवाली होती हैं, वे शाश्वतिक वेद ज्ञानवाली हैं और लोगों को संसार में रहने का उपदेश देती हैं ॥६॥